धर्मेंद्र सिंह   (कलावती नंदन)
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Joined 30 March 2020


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Joined 30 March 2020

पिता

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शुभ प्रभात 🌺
के साथ साथ बधाइयां भी देना चाहूंगा।
15 जून का एक नया सवेरा जो आप को एक अलग पहचान देगा उसके लिए बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं 🌺🌺
एक नई लेखिका एक नए नाम और पहचान से चंचल "मृदुला" का प्रवास सुंदर और सुगम हो ।

जीत जीत हो जिद जिसकी,
उन्हें निंदक से क्या मतलब।
जो सपने सजाए आंखों में,
उन्हें अपवादों से क्या मतलब।।
बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

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क्या छोड़ूं क्या लेकर जाऊं

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पेड़ों से बधकर पल्लव भी पूजे जाते हैं ।
यथार्थ धरा की चौखट पर भागे भागे हैं ।


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प्यार पाने को दिल तड़पता है ।


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लगती सावन की फुहार उदास चेहरे की हंसी ।
सूखते तरुवर पर जैसे शबनमी बूंदे पड़ी ।

मन में है तूफान आंखों में सूनापन लिए ।
भागता हूं रोज आखिर मैं भला किसके लिए।

किसके खातिर ये उदासी मुखड़े पर निकल पड़ीं।
सूखते तरुवर पर जैसे शबनमी बूंदे पड़ी ।

आज उनके ही ख्यालों में आंखे बरसीं रात भर ।
आया रोना क्यूं मुझे उनकी हर एक बात पर ।

सोचकर उनकी वफ़ा पर बेवफा क्यों चल पड़ी ।
सूखते तरुवर पर जैसे शबनमी बूंदे पड़ी ।

ऐसा लगा जैसे लगा हो हांथ कंगन आरसा ।
दिल के कोने में उमड़ता लग रहा है प्यार सा ।

अंधेरी गलियों में जैसे बरात लव की फिर जली ।
सूखते तरुवर पर जैसे शबनमी बूंदे पड़ीं।।

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जिंदगी

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बनकर प्यार का बादल मेरे घर पर बरसती हो।
बनकर फूल की खुशबू मेरे आंगन महकती हो ।

कैसे भुलाऊं तुम्हे बस इतना बता देना ,
मेरी आंखों की निदिया बन मुझे आराम देती हो ।।

मेरी आवाज पर तुम जहां को एक कर देती ।
नहीं हो भूँख फिर भी तुम खिलाती प्यार से रोटी।

मेरे जीवन की नैया बन भवसगर पार करती हो।
बनकर फूल की खुशबू मेरे आंगन महकती हो ।।

मेरी बेदी की देवी तुम तुम्हीं लक्ष्मी की छाया हो।
तुम्हीं धन धान्य की पूरक तुम्हीं जग की माया हों।

मेरे सूने से जीवन को मृदुल मुस्कान देती हो।
बनकर फूल की खुशबू मेरे आंगन महकती हो ।।

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आखिर कब तक ????

गोलियां कब तक खाते रहेंगे ।
बम के विस्फोट से मानव अस्थियां ,
कब तक उड़ती रहेंगी।
क्योंकि यह सवाल मै नहीं
बल्कि पूरा विश्व कर रहा है
अपने अपने नायकों से देश के विधायकों से ।

आखिर कब तक
हम शांति का नारा लगाते रहेंगे
आखिर कब तक
बहनों का सुहाग उजड़ता रहेगा
आखिर कब तक हम अपनों के
बुछुड़ने का गम उठते रहेंगे ।
क्योंकि यह सवाल मै नहीं बल्कि
पूरा विश्व कर रहा है।
अपने अपने नायकों से देश के विधायकों से।

कृपया शेष रचना कैप्शन में पढ़ें ।

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जो मिले मुझसे यहां पर की चर्चा तेरे नाम की ।
वो सुबह की बेरुखी सजना संवरना शाम की ।

तेरी सांसों की महक जैसे हवा में घुल गई ।
धूप की आगोश में फिर से कलियां खिल गई।

जिससे पूछा हाल उनका सब मुझे मतवाले मिले।
कुछ जुबां थी बंद तो कुछ उनके दीवाने निकले ।

नाम के उनके यहां अब पूरे शहर में शोर है ।
हुस्न की है वो परी या जन्नत से उतरी हूर है ।

एक ही सुर ताल में एक दिशा में सब चले ।
क्या बूढ़ा क्या नौजवाँ सब तेरे दीवाने निकले।

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