धर्मेंद्र सिंह   (कलावती नंदन)
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Joined 30 March 2020


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Joined 30 March 2020

सावन की ऋतु हो या
फागुन की फुहार हो ।
लगता है सुना सब ,
कितना भी प्यार हो ।
नहीं है नसीब मेरे रहूं उनके करीब रे।
दुनियां में ऐसा कहां मेरा नसीब रे ।।
तुझसे ही जिंदगी में ,
जलता हुआ दीप है ।
तेरे संग महफिल में ,
गजल और गीत है ।
कोइ मिटा दे चाहे, जलते हुए दीप रे ।
प्यार मिल जाए तो , राहों में प्रदीप रे।।
उनसे ही चेहरे पर ,
रौनकें हजार हैं ।
उनसे ही जगमग ,
मेरा संसार है ।
साथ नहीं सजनी तो, लागे नाही नीक रे ।
रतिया कटत नहीं उठे मन में टीस रे ।।

नहीं है नसीब मेरे रहूँ उनके करीब रे ।
दुनियां में ऐसा कहां मेरा नसीब रे ।।





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कृपया कैप्शन में पढ़ें

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Happy birthday 🎈 🎂 Di

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लेकर मेघ से सावन
तुझे मनभावन बना दूँ मैं
बनकर दिल की धड़कन
तुझे जीना सिखा दूँ मैं



तेरे होंठो की परतों पर
गुलाबों की कली रख दूँ
लगे जब प्यास तुमको तो
मैं शबनम की नमी रख दूँ


कृपया शेष कैप्शन में पढ़े

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24 / 07/🎂

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मेरे तन में खुशबू भारत की ,
भारत है मेरे मन में।
धरती स्वर्ग समान यहां की
फैला नील गगन में।

भिन्न यहां की बोली भाषा ,
भाव सभी के एक हैं ।
भिन्न यहां की रीति रिवाजें
त्यौहार सभी के एक हैं ।

हम भारत के वासी हैं ,
भारत है हर घर में ।
मेरे तन में खुशबू भारत की ,
भारत है मेरे मन में ।

हर भाषा में राम बसे हैं,
हर बोली में राधा
नैनों में सागर सिमटा है,
जीवन गंगाजल सा।

शांति भाव सदमार्ग सदा है,
खुशियां हर आंगन में।
मेरे तन में खुशबू भारत की।
भारत है मेरे मन में।

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चंदन सी मेरी माटी उड़ती रहे गगन में।
सौंधी सी इसकी खुशबू फैली है मेरे मन में।

इस मिट्टी में है खेले राणा प्रताप, शिव्वा।
करते नमन सभी हैं करती प्रणाम विश्वा।

अमृत रची बसी है मेरे देश की धरा में ।
चंदन सी मेरी माटी उड़ती रहे गगन में ।।

मिट्टी में खेलते हैं मिट्टी में हर खुशी है।
हमको हमारी शोहरत इस भूमि से मिली है ।

यह पुण्य भू धरा है सारे जहां के घर में ।
चंदन सी मेरी माटी उड़ती रहे गगन में ।।

इसकी शान की खातिर पृथ्वी ने खेली होली ।
भगत सिंह ने जान दे दी शेखर ने खाई गोली।

झांसी की गर्जना भी है गूंजती जहाँ में ।
चंदन सी मेरी माटी उड़ती रहे गगन में ।।

हों राम जिसकेआदर्श,जहां कृष्ण खेलते हो
जहां राम कृष्ण हरि जयराम बोलते हों ।

सद्भाव की वो गंगा बहती सदा है मन में ।
चांदी सी मेरी माटी उड़ती रहे गगन में ।।

।। कलावती नंदन।।






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साल बीते बहुत मुस्कुराया नहीं
बिन तेरे गीत कोई मैं गाया नहीं

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पिता

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शुभ प्रभात 🌺
के साथ साथ बधाइयां भी देना चाहूंगा।
15 जून का एक नया सवेरा जो आप को एक अलग पहचान देगा उसके लिए बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं 🌺🌺
एक नई लेखिका एक नए नाम और पहचान से चंचल "मृदुला" का प्रवास सुंदर और सुगम हो ।

जीत जीत हो जिद जिसकी,
उन्हें निंदक से क्या मतलब।
जो सपने सजाए आंखों में,
उन्हें अपवादों से क्या मतलब।।
बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

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