जब कोई नहीं था...ख़ुद ने ही ख़ुद को सहलाया...
बस यूं समझ लो...अंधेरों ने ही उजियारा फैलाया...-
कुछ पुरानी तस्वीरें, कुछ पुरानी यादें ,
अपनो को खोने का दर्द, तन्हा रातों की ये सर्द,
होंठो की मुस्कान थम सी गयी है,
आँखो में यादें बस बसी रह गयी है।-
देखो नया दौर है आया और नया वक़्त चल रहा है
ना रही पहले सी बात यहाँ, पलपल मंजर बदल रहा है...
सिर्फ़ कुछ रुपयों की ख़ातिर, मन में बैर पल रहा है
इंसाँ ही देखो आज यहाँ, इंसाँ को छल रहा है....
ख़ामोश निगाहों में है ठहरा,इक दर्द का समुंदर
खोकर किसी अपने को, कोई अपना मचल रहा है...
जल गया है जिस्म अब, बाक़ी बची बस राख़ है
अब भी कहीं उस राख़ में, मेरा दिल भी जल रहा है...
मन बुझा बुझा सा है मेरा और ना दिल संभल रहा है...
फ़ैला है ज़हर हवाओं में, न कुछ मिल हल रहा है...
चुप करो अब बस करो कि, किसने क्या किया है
इन ढेर से सवालों में दबा, कही वो जवाब खल रहा है...
वक़्त नहीं ठहरता कभी, वक़्त गुज़र रहा है
कल की चाह में यहां, आज हाथ मल रहा है...
आज का ही दिन है अपना, आज ही में जी ले तू
कल का क्या भरोसा, हमसे यही कह कल रहा है...-
ऐ खुदा तू ऐसी शिकस्त दे हमें,
जिससे सजा सकूं अपने सपने...।
ऐसा बांध दूं तेरे दिए हुए शिकस्त से उन्हें,
जो भागते फिर रहे हैं हर अपने...।।-
जीवन बड़ी आसान लगती है अपनो
के साथ लेकिन दुख तो इस बात
का है के ये भी पता चलती है
किसी अपने के जाने के बाद...-
अपनो को खोने" का दुःख तब तक ही होता हैं,
जब तक अपने दुश्मनों-सा व्यवहार ना करे..-
जाने वाले चले जाते है रह
जाती है सिर्फ उनकी
यादें और उनकी कमी
उनके जाने के बाद
परिवार में चाहे कितने
भी सदस्य हों पर उन
शक्स की कमी कोई
पूरी नही कर सकता
मरते दम तक उनकी
कमी खलती है-
अब अपनो को खुश रखना
इतना आसां नहीं
अपनो को खुश रखने के
लिए खुद को अकेले
में रोना पड़ता है!
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अजीब सी!
घुटन होती है....,
जब रूठे हुए अपनों को मनाने की
तमाम कोशिश नाकाम हो जाती है।
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