Aakriti Sarla Dwivedi   (आकृति सरला द्विवेदी🖋️)
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Joined 6 April 2017


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Joined 6 April 2017
9 JAN 2022 AT 1:02

नए दौर के कुछ लड़के अब भी पुराने रह गए,
बदन चूमना भूल वो ज़ुल्फ़ सँवारते रह गए।

कौन जाहिल है जो इश्क़ को गंदा बताते है,
हमारे 'मालिक' तो हमें खुदा ख़ुदा कहते थक गए।

ये कौन आशिक़ है जो इश्क़ में उतार देते है कपड़े,
हमारे वाले तो आज भी दुपट्टा संभालते रह गए।

इक दिन बहुत प्यार आया औऱ हम होश गवा बैठे,
शाम ढली, सूरज निकला, हम उनकी बाहों में सोते रह गए,

इक हादसें में सारा हुस्न ख़ुवा बैठी औऱ पहुँची उनके पास,
वो ख़ासे पाग़ल, मिरे चेहरे के हर दाग़ चूमते रह गए।

ज़रा सी तकलीफ़ में भी चिल्लाती हूं उनका नाम ऐसे,
जैसे लेते है नाम बच्चे माँ का जो मेले में बिछड़े रह गए।

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30 DEC 2021 AT 2:43

यक़ीनन मत करो मुसलसल किसी पे एतबार अंधा,
मुश्किल वक्त में अक्सर अपने ही नहीं देते है कंधा।

ये गज़ले नज़्में तो पिछले जडीले आशिकों की बातें है,
नए वालों ने तो बस नाम कमाने को बना लिया है धंधा।

जिसको वो दिन रात बुलाती है बाँवरो की तरह अपना,
री पगली! क्या जाने वो उसे ही समझता है अपने गले का फंदा।

पड़ के इश्क़ में लड़कियां बाँध लेती है बेवकूफ़ी की पट्टी,
बढ़ाती है नज़ाकत से क़दम उस दलदल में जो होता है गंदा।

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1 NOV 2021 AT 23:13

मुहब्बत के बाद आई किस जहाँ से ये नफ़रत,
मुहब्बत को छोड़ आगे बढ़ गई इतनी ये नफ़रत।

इंसा को इंसा नहीं पसंद ना बर्दाश्त हैं अब बातें,
किसने भर दी है इनके लहूँ में इतनी ये नफ़रत।

आम होता है ख़ास होता है होता है कुछ नयाब,
सबकी होतीं है वजह करने को इतनी ये नफ़रत।

घँटों तक सुनने वाला नहीँ करता दिनों तक फ़ोन,
जाने कैसे कर ली हैं उसने मुझसे इतनी ये नफ़रत।

बचपन मे होतीं थी पागल लेकर जिस तारीक को,
करने लगी हूँ जाने कैसे अब उससे इतनी ये नफ़रत।

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5 SEP 2021 AT 23:22

गर अपना कोई रूठे तो मना लेना चाहिए,
रिश्तों में पड़ी गाँठ को सुलझा लेना चाहिए।

किसी के सर का बोझ बनने से बेहतर है,
जान छोड़ बीती हुई याद बन लेना चाहिए।

गर रोता रहता है पड़ के वो तेरी मुहब्बत में,
दिल का मकाँ छोड़ कही ईटे का घर लेना चाहिए।

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29 AUG 2021 AT 3:16

रिश्ते निभाते निभाते कैसे गहरे हो जाते है,
फूलों के पास काटो के जैसे पहरे हो जाते है।

कैसे इक अज़नबी बन जाता है साथी साँसों का,
कि इक दिन ना सुने तो जैसे कान बहरे हो जाते है।

दूर रह के मैं चाहे लाख छुपा लूँ बातें दुनिया की,
इक झलक से ही सब नेहले पे दहले हो जाते है।

ये कैसी दीवानगी में डूबी रहती हूँ मैं अब आजकल,
उसके सर के बाल भी माथे पे सजे सेहरे हो जाते है।

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26 JUN 2021 AT 2:50

शाख से पत्ते कुछ इस तरह झड़ जाते है,
जैसे सारे रिश्ते इक दिन बिखर जाते है।

झगड़े-तमाशे रोज़ होते आशिकों के बीच,
निभाने वाले फ़िर कैसे भी निभा ले जाते है।

आख़िर झगड़ कर मैंने सब खत्म कर दिया,
फ़िर मैं ही पूँछती हूँ रिश्ते कैसे निभाए जाते है।

मुहब्बत का मारा अहमक़ रोता रहा इस क़दर,
मासूम पे इस कदर तो दर्द नही बरसाए जाते है।

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20 JUN 2021 AT 12:48

मैंने ईश्वर से जब जब माँगा,
माँगी अपने पिता की सुरक्षा,
मुझे मालूम है पिता के होते,
मुझे नही फैलाने पड़ेंगे हाथ,
फ़िर कभी भी ईश्वर के आगे,
पिता के होते दुख छोटे लगेंगे,
पिता के होते नही छिनेगी छत,
पिता के होते नहीं छीनेंगे स्वप्न,
पिता के होते ईश्वर समीप है।

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19 JUN 2021 AT 0:34

कुछ इंसानो में होती है कुछ कही सुनी गलतियाँ,
कुछ इंसानो में होती है सिर्फ़ गलतियाँ ही ग़लतियाँ।

कोई यूँही नहीं टूट के बिखर जाता पल में जाना,
उसने भी की होती है कई मुद्दतों से सिर्फ़ गलतियां।

लाख बचाते हुए भी इक दिन हार गया मेरा रिश्ता,
शायद मिरे बदन में लहूँ के साथ बहती है गलतियाँ।

जान गँवाया करती थी जिसकी इक मुस्कुराहट पे,
अब वो हँसता नहीं, मैंने ऐसी भी की है गलतियाँ।।

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5 JUN 2021 AT 23:42

इससे बुरा अब औऱ क्या होना चाहिए,
उसे अब किसी दूसरे का होना चाहिए।

देखो! पूरे शहर में कहकहा मचा हुआ है,
रिश्ते को ऐसे तो नहीं ख़त्म होना चाहिए।

ढ़लती है उम्र सोचते अपनी गलतियों को,
की मुहब्बत में हमे मुहज़्ज़ब होना चाहिए।

हर किसी से लड़ जाने वाली क्यों रोती रहीँ,
इश्क़ में इतना तो बर्बाद नहीं होना चाहिए।।

मुहज़्ज़ब-संस्कारी

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3 JUN 2021 AT 0:44

अमीरी ग़रीबी यहाँ सब एक जैसी है ,
हाय तेरी मेरी हालत यारा एक जैसी है ,

तुम यारा बने सेठ और भूखे हो पैसों के,
मुझ पाग़ल की गरीबी भी गरीबों जैसी है,

बनी जोगन फ़िरती हूँ जाँवेदा के पीछे पीछे,
एक नज़र भी मश'अल-ए-मेहताब जैसी है,

अक़्सर छोटी छोटी बातों पे वो रूठ जाता है,
उफ़्फ़ उसकी ये अदाएँ भी सआदत जैसी है।

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