कमबख़्त...अल्हड़ और ज़ाहिल ही अच्छा था मैं...
इस समझदारी पर कम से कम...
उस मासूमियत के क़त्ल का इल्ज़ाम तो न लगता...
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शायद किया ना हो कोई ऐसा काज़..जिससे कोई पहना दे ... read more
एक आसमां...एक ही ज़मीं हैं
प्रेम की महक फिर क्यों थमीं हैं
ख़ुश तू....नाराज़ मैं नहीं हूँ
फिर भी आँखों में नमी ही रही हैं
दिल में आग हैं या आग में गिर गया दिल हैं
मैं वो ही हूँ
पर....
अब वो नहीं...सूख जो गई आंसुओं की सारी झिल हैं
(एक अधूरी प्रेम कहानी....
का आगे का भाग-2 जल्द ही लेकर आ रहा हूँ
पर थोड़ा समय और चाहिए)
😊जब तक आप चाहो तो भाग-1 Caption में फिर से पढ़ सकते हैं😊
🙏Read in Caption🙏-
खुद जले हैं या जलाये जा रहे हैं
बस...
इसी गफ़लत में यूं ही, उम्र बीताये जा रहे हैं
मर-मर के जी रहे हैं या जी,जी के मर रहे हैं
बस...
भीतर ही भीतर डूब यूं ही, बाहर से दिख तर रहे हैं
कुछ तो कहानी होगी या कहानीकार होंगे
बस...
खुद से बुदबुदाते हम यूं ही,क्यों ना खुद के सलाहकार होंगे
नाराज़ तो खुद से "राज" हुआ नहीं,कुछ तो राज़ रहा होगा
बस...
खुद ही पर कोई क्यों ना यूं ही, गाज़ गिराये जा रहा होगा-
कुछ तो महक रहा हैं या
कुछ तो दहक रहा हैं
या कि कुछ बहक रहा हैं
जलने की बू हैं
या फिर
निखरने की खुश्बू
या तो फिर
इंसा से इंसानियत राख
होने के तक पश्चात की बदबू हैं
शायद
इंसा में इंसानियत विलुप्ति के कगार पर हैं
ऊपर से लिपा-पोती,लाग-लपेट
भीतर से विशुध्द भंगार हैं
फिर भी भ्रम में फंसा,
आँखों का अंधा
स्वघोषित महान ये बंदा
नितदिन नये-नये दिखावे का चलाकर गोरख धंधा
फर्श से अर्श पर पहुंचने का दर्शा कर संघर्ष
मन ही मन महसूस करता हर्ष
गलत हैं या सही
हिसाबों की अपने ढंग से न रखते हुए बही
सब कुछ बेढंगें तौर-तरिकों को अपनाते हुए सहर्ष
खुद से हार,जमाने को जीतता हैं
हाँ वो ऐसे ही जीता हैं
या फिर अमृत-पान के भ्रम में
जीवन भर घूंट ज़हर का पीता हैं
कुछ तो महक रहा हैं या
कुछ दहक तो रहा हैं....!!!!-
अब मैं कहानियाँ नहीं लिख पाता हूँ,
ज़िंदगीं की पहेलियां सुलझाने के चक्कर में...
हाँ कुछ तो सुकूं महसूस होता हैं,
खुद से लड़कर बाद कई बार,इंसा से बनने पत्थर में...!-
जब तक इस पेट की लालची आग आँखों के समंदर को सूखाकर....
आत्मा तक को भी छलने करने से न चूके.....
साऽऽऽऽऽऽली....कम्मीनी....वही तो होती हैं.....साब,
"भूख"..........!!!!-
बदस्तूर ज़िदगीं कटती रही...दस्तूरों को जीये जाने में,
हर हालात के सामने.....बस....खुद ही को आजमाने में!!-
"सच"
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"सच" में कभी-कभी तो सच भी ये सोचने को मजबूर हो ही जाता होगा ना कि मेरा होना भी एक सच ही हैं या कि बस सच की आड़ में झूठ का प्रचार-प्रसार मात्र बनकर रह गया हूँ....!!!
सच में सच का होना व सच होकर भी ऐसा सोचना मात्र भी सच द्वारा कितनी दुष्कर व भयावह स्थिती से पार पाकर अपने आप को किसी भी परिस्थिती में परिवर्तित न करते हुए भी अपने आप जैसा ही बनाए रखना भी कितना बड़ा "सच" हैं...।-
मन में कुछ बात तो हैं पर,दिमाग बोलता कोई बात नहीं...
मचलते बहुतेरे अहसास हैं पर,गुम से हैं ना जाने ज़ज़्बात कही...
भीड़ में लगते हैं मुक्कमल से अपने सभी पर,फ़िर क्यों होती मुलाकात नहीं...
दिखता बहुत कुछ गलत सा हैं पर,बेतुके लोगो के लगते हर ख़्यालात सही...
श़ूल अनगिनत धंसे हैं ज़िगर में फिर भी,किसी से कोई सवालात नहीं...
कुछ तो तर्ज़ुबा हम भी रखते हैं पर,जाने क्यों ज़ाहिल इस ज़माने की ही वकालात रही...
ज़माने से ज़माने की ही फ़िक्र रही हैं इस दिल को, पर ख़ुद किस हाल में हैं बस यही मालूमात नहीं...
खुद में हूँ या फिर दुनिया की दोगली इस भीड़ में हूँ ग़ुम,आधी-अधूरी अक़्सर बस ये ही तहकीक़ात रही...
माना कि...जीने की चाहत में हर दम मिली मौत की सौगात ही सही...
पर जीने के लिए इस दुनिया में इस दुनिया से भी बेहतर कोई क़ायनात नहीं...
मन में कुछ बात तो हैं पर,दिमाग बोलता कोई बात नहीं...
मचलते बहुतेरे अहसास हैं पर,गुम से हैं ना जाने ज़ज़्बात कही...-
मेरे सपनों की इक खास बात हैं...
कमबख़्त ये साकार हो या ना हो,
पर इनसे जलने वालों की ये अक्सर....
"नींदें तो उड़ा ही देते हैं"
😊😊😊😊😊😊😊-