आज के अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर छपी दो खबरें
एक ऊपर तो दूसरी नीचे के भाग में
अख़बार को बीच से मोड़ने पर
दोनों खबरें हेडलाइन बनती हैं
एक से होता है सर फ़ख़्र से ऊँचा
तो दूसरी से होती है शर्मिंदगी
एक ख़बर है चन्द्रयान की
'भारत चांद छूने चला'
दूसरी ख़बर गिरिडीह की है
जहां डायन समझ पीटा गया
एक महिला को पेड़ से बांध कर
अख़बार की तरह हमारा हिंदुस्तान भी
मुड़ा हुआ है दो भागों में
एक आगे है
जिसे हम पढ़ते हैं, देखते हैं,
जिसके साथ चलते हैं
दूसरा पीछे है
जहां अंधेरा है,
जो हमारे साथ नहीं
जो काफी पीछे छूट गया है
जो रहता है हाशिये पर
और छपता है मुड़े हुए अखबार के
पीछे वाले भाग में-
धर्म का मुख्य स्तम्भ भय है। अनिष्ट की शंका को दूर कीजिये, फिर तीर्थ यात्रा, पूजा-पाठ, स्नान-ध्यान, रोज़ा-नमाज़ किसी का नामों-निशान न रहेगा। मस्जिदें खाली नज़र आएँगी और मंदिर वीरान!
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ना जाने तेरा साहब कैसा है
मसजिद भीतर मुल्ला पुकारै, क्या साहब तेरा बहिरा है?
चिउँटी के पग नेवर बाजे, सो भी साहब सुनता है
पंडित होय के आसन मारै, लंबी माला जपता है
अंतर तेरे कपट कतरनी, सो भी साहब लखता है-
कभी किसी पर आँख बंद करके भरोसा मत करना,
वरना लोग अंधा समझने लग जाते हैं ।-
मैं अंधविश्वासी हूँ
बिल्ली रास्ता काटे तो, रुक जाता हूँ
दिखे कोई मंदिर अगर, झुक जाता हूँ
पेड़ो से धागे बाँध, मन्नत माँगता हूँ
नींबू मिर्च मैं दरवाजे पर टाँगता हूँ
अगर कोई कभी पीछे से टोक देता है
या फिर कोई छींक कर रोक देता है
शुभ कार्य से पहले मैं दही खाता हूँ
दिशा शूल हो यात्रा पर नहीं जाता हूँ
गुरुवार को नहीं झाड़ता मकड़ी के जाले
तरह तरह के वहम मैंने हैं मन में पाले
कर टोटके बुरी नजर उतारता हूँ
पाप के डर से मच्छर भी नहीं मारता हूँ
जाने ये सब मुझे किसने है सिखाया
पीढ़ी दर पीढ़ी से ये चलता आया-
पापी जीव हरण करें,
पत्थर पूजत भगवान!
आसा कर्म भजो रे भाई,
घर चौरासी धाम!!-
माँ, गले पर काला टीका लगाती थी,
माथे पर चंदन का तिलक कर जाती थी
उसे फ़िक्र रहती थी सबकी मानो ऐसी
परिवार सहेज कर रखने को,
चौखट पर स्वास्तिक बनाती थी।
- सौRभ-
अंधविश्वास का चश्मा पहन के दुनिया देखोगे
तो सब कुछ गलत ही दिखेगा
मन की आँखों से देखोगे
तो सब सही नज़र आएगा-
दिल रोता हैं देख उनको जूठन खाते देख,
कैसे हो रही शर्मशार मानवता आज ये देख,
मानव के अंदर ह्रदय नहीं लगता ये सब देख,
हरिजनों के अंदर तो जैसे बसती ही नहीं रूह,
नफरत सी होने लगी गांव में ये सब होता देख,
छुआछूत एवं अन्धविश्वास का होता कैसा खेल,
बहुत तकलीफ़ होती है पुखराज को ये सब देख ।-