दर्द से गहरी यारी दर्द में पला-बढ़ा हूँ,
अब दर्द भी मिलें तो दर्द नहीं होता है।-
हम चालाकियाँ करके यह सोचते हम कितने होशियार है,
स्वार्थ में इतना गिर जाते करते रिश्ते-नातों को शर्मशार है।
पहले-पहल आदतें बिगाड़ लेते हैं हक़ीक़त से दूर हो जातें,
फ़िर परेशान रहते जब ज़िन्दगी का सच लेता आकार है।
अब किसी से मिलकर किसी की तबियत हरी नही होती है,
नैतिकता, संस्कारों का नहीं रहा हमारा दूर तक सरोकार है।
होड़ लगीं अब यहीं तेरे घर, गाड़ी से बड़ा मेरा घर गाड़ी हो,
दिखावे का ही दुनिया में हर तरफ मचा हुआ हाहाकार है।
दुनिया भूल जाती है "पुखराज" अपने माँ-बाप को ही अब,
लोगों का ज़मीर भी मर चुका जैसे न बचा दिल में प्यार है।-
मेरे मन में बैठा यह डर क्यों नहीं जाता,
ज़ख्म मेरे दिल का भर क्यों नहीं जाता।
किसी का बुरा सोच के शर्म न आए मुझे,
ख़ुदा मेरा ऐब-ओ-हुनर क्यों नहीं जाता।
कई बार ही शर्मिंदा होना पड़ा है मुझको,
यह अहम का नशा उतर क्यों नहीं जाता।
याद नही ये कब खुलके मुस्कुराया था मैं,
ये बुरा वक़्त ख़ुदा गुज़र क्यों नहीं जाता।
हाल यह "पुखराज" बीते दिन न बीते दर्द,
दर्द का यह आलम ठहर क्यों नहीं जाता।-
है तन्हा ज़िन्दगी की शाम मेरे ख़ुदा रहम कर,
बनता नहीं मेरा कोई काम मेरे ख़ुदा रहम कर।
इरादा ग़लत नहीं होता मेरा फ़िर भी हरबार ही,
लगा है मुझ पर ही इल्ज़ाम मेरे ख़ुदा रहम कर।
मेरी कोशिश में तो कोई कमी ना रहीं फ़िर भी,
हर बार ही हुआ हूँ नाकाम मेरे ख़ुदा रहम कर।
भले ख्वाहिशें पूरी ना हो पर जरूरतें तो पूरी हो,
मचा रहता मन में कोहराम मेरे ख़ुदा रहम कर।
लड़खड़ाते हुए मयखाने जा पहुँचा तो हुआ हश्र,
जाए ना दर्द पीकर भी जाम मेरे ख़ुदा रहम कर।
अब तो हँसना भी हुआ गुनाह हमारा "पुखराज"
ख़ामोशी चुभे सहूँ ये अंजाम मेरे ख़ुदा रहम कर।-
पापा से सीखा है रिश्तों को मान देना एवं निभाना,
सादगी में रह ईमानदारी से अपना जीवन बिताना।
उन्होंने बताया ये संघर्ष अकेले ही करना पड़ता है,
मुश्किलें कितनी भी आये पर कभी मत घबराना।
पापा से सीखा मैंने खुद को सहज कैसे रखना है,
ईमानदार रह के सच्चाई से अपना जीवन सजाना।
उन्होंने सिखाया ज़िम्मेदारियों को हरहाल निभाना,
अपने कर्तव्यों को पूरा करना बहाने नहीं बनाना।
पापा ने सीखाया अपनी ग़लतियों पे शर्मिंदा होना,
ग़लत होने पर माफ़ी मांगने में कतई नहीं शर्माना।
पापा ने सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया "पुखराज" वो है,
बच्चों को बढ़ा बनाना पर नेक इँसान भी बनाना।-
मन में साहस धर के ज़िन्दगी की हर जंग लड़ता चल,
गिरकर फ़िर से खड़ा हो जा तू नया जोश भरता चल।
नज़रिया सकारात्मक सोच अपनी हरदम बड़ी रखना,
लाख मुश्किलें आए राहों में हँसके सामना करता चल।
ख़ुद पर गर्व कर और हर दम चेहरे पर मुस्कान रखना,
ईश्वर पर श्रद्धा रख हमेशा बिना भय के चलता चल।
अपने हिस्से की ईमानदारी निभा सच्चा इँसान बन तू,
खुशियाँ बिखेरते दीन-दुखियों का सहारा बनता चल।
जिंदगी जी अपनी शान से आत्मसम्मान बचाकर रख,
मेहनत के दम पर यार मेरे अपनी किस्मत गढ़ता चल।
अब नया कुछ भी नहीं है "पुखराज" ऐसा ना सोच तू,
अभी नापी मुठ्ठी भर ज़मीं आसमां बाक़ी नापता चल।-
जो नासमझ वे ही कहेंगे दिल-ए-तन्हा कुछ भी नहीं,
ख़ाक कर दे ज़िन्दगी भले ये बद-दुआ कुछ भी नहीं।
सिर्फ़ सोच बदलीं थी देखा क्या नज़ारे ही बदल गए,
पर नादानों ने तो कहा दीदा-ए-दुनिया कुछ भी नहीं।
समंदर प्यास तो किसी की बुझा न सका पर इतराए,
जिनके होने से वो है पर कहता दरिया कुछ भी नहीं।
मेरे लिए सुकून ही सफलता ठहर जाऊँ जहा मिलता,
पर कुछ की नज़रों में अर्सा-ए-दुनिया कुछ भी नहीं।
गलतफहमियों के शिकार हम इस क़दर है "पुखराज"
मैंने सारा भार ढो रखा मेरे बिन दुनिया कुछ भी नहीं।-
माना दर्द-ए-दिल ज़िन्दगी में खूब भरा पड़ा है,
पर सच ये हर आदमी ही मुश्किलों से लड़ा है।
भला ज़िंदगी कब किसकी यहाँ पर आसान है,
जीतेगा वही सब सह के भी मुक्कमल खड़ा है।
मंज़िल पाने वाला पहले कई बार गिरा होगा,
विश्वास ख़ुद पे हार नहीं मानी जिद्द पे अड़ा है।
झुक जाता आसमां भी हौसले हिम्मत के आगे,
कायर ने नहीं साहसी ने अपना भविष्य गढ़ा है।
धन-दौलत हो वहाँ सुकून, शांति हो ज़रूरी नहीं,
परेशान वो सिर भी जो हार-मोतियों से जड़ा है।
कीचड़ में खिलें कँवल से सीखा "पुखराज" मैंने,
ख़ुश वहीं जिसने सकारात्मक नज़रिया धरा है।-
आचरण और व्यवहार व्यक्तित्व की असली पहचान,
अच्छा चरित्र तो पाता हर दम दुनिया में मान-सम्मान।
सादगी, सहृदयता, सहजता व्यक्तित्व की खूबियाँ हैं,
विनम्रता अपनाए बिना बन नहीं सकता कोई महान।
आचरण में शुद्धता, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा है विशेष,
क़िरदार छोड़ दो तो हाड़-मांस होता सभी का समान।
क्रोध, अहंकार ऐसे दीमक व्यक्तित्व को निगल जाते,
व्यक्तित्व का यश चाहिए तो रखो अपनी मीठी ज़बान।
आत्ममुग्धता से बड़ी "पुखराज" बिमारी नही है जहाँ में,
ऐसे लोगों की ये खास खूबी समझे ख़ुद को भगवान।-