यह जीवन कोई गुड्डा-गुड्डी का खेल नहीं,
हर डिब्बा ख़ुशी से लबरेज़ ये वो रेल नहीं।
कभी तन्हा, कभी ग़मों में डूब-कर कटती,
खट्टी-तीखी हरदम ही ये मीठी भेल नहीं।
जीवन माँ की गोद नहीं चैन-सुकू ही मिलें,
साँसों पर बन आती ये आसान ठेल नहीं।
मनचाहा ही मुकाम मिलें ये मुमकिन नहीं,
कोई भी रख सकता इस पर नकेल नहीं।
जीवन पे 'पुखराज' किसी का बस न चलें,
कोई काबू में रख सकें ये कोई रखेल नहीं।-
मेरी सारी खुशियाँ तेरी तेरे सारे ही ग़म मुझे क़बूल है,
दर्द-ए-दिल लें ख़ुशी लुटाना ही मोहब्बत का उसूल है।-
सच है तकनीक मानव जीवन को आसान कर दें,
उसका वक़्त बदल-कर दुनिया में पहचान कर दें।
फ़ायदे हैं अनेकों ही नुकसान भी हैं कई इसके,
तकनीक की ज़्यादा लत ज़िन्दगी परेशान कर दें।
इंटरनेट की दुनिया होती है जानकारी का भंडार,
झूठी खबरें भी उपलब्ध है जो भंग ध्यान कर दें।
सोशल मीडिया पर बना लिए हैं करोड़ों अनुयायी,
असली रिश्ते को निगल ये जीवन बयाबान कर दें।
तकनीक का सही इस्तेमाल "पुखराज" ज़रूरी है,
वरना आत्मियता मारके इँसान को सामान कर दें।-
मासूम बचपन भी कितना ही ख़ूबसूरत होता है यारों,
भरपूर लाड़-पाल दुलार ये सच जन्नत होता है यारों।
मन में न छल-कपट न ईर्षा-द्वेश न ही नियत में खोट,
तभी तो कहते बच्चा भगवान की सूरत होता है यारों।
बड़े होने पे जिम्मेदारियाँ घेर लेती वो तो बचपन ही है,
खेलने-कूदने मस्ती के लिए भी मोहलत होता है यारों।
हर मोड़ पर मन करता है कि दुबारा बच्चा बन जाऊँ,
बचपन का गुज़रा हर पल सुकून, राहत होता है यारों।
घटनाएँ गवाह है 'पुखराज' कल का कोई भरोसा नहीं,
फ़िर मन में नफ़रत पालकर जीना हिम्मत होता है यारों।-
उम्र का तकाज़ा कहता, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए,
कर्तव्यों, फ़र्ज़, ज़िम्मेदारियों को वक़्त रहते ही समझा जाए।
बैठे-बिठाए नहीं मिलती है सफलता किसी को भी यहाँ पर,
अच्छे दिनों के लिए पहले बुरे दिनों का भी स्वाद चखा जाए।
कभी-कभी अकेले ही लड़ना पड़ता दर्द से भी गुज़रना पड़ता,
वक़्त एकसा नहीं रहता यह बदलेगा कि संयम,धैर्य रखा जाए।
उम्र के हर पड़ाव ने अलग रंग दिखाया खूब आज़माया भी,
अपने इन अनुभवों को दूसरों के साथ भी सांझा किया जाए।
बीता हुआ यह वक़्त "पुखराज" दुबारा लौटकर नहीं आता है,
अफ़सोस न रह जाए हरपल को जी भर खुशी से जिया जाए।-
परंपराओं के नाम पर हमने ख़ुद को ही खूब छला है,
हमसे यह पुतला ही जला मन का रावण नहीं जला है।
बातें राम के आदर्शो की करते पर अपनाते नहीं उन्हें,
भाई ही भाई का दुश्मन बना यहाँ पे आपस में लड़ा है।
चेहरे पे चेहरे लगाकर घूमते कि कोई पहचान न लें हमें,
मानव से दानव बन गए चाहते किसी का न हम भला है।
झूठ, पाखंड का हल्ला मचा है मानवता शर्मशार हो रही,
इँसानियत रही ना जमीर ज़िंदा ना बचा क़िरदार हवा है।
बहन-बेटियों सुरक्षित नहीं है ना घर में ना बाहर में अब,
खुल्लम-खुल्ला हर दिन ही यहाँ पे सिया हरण हुआ है।
दावा यहीं करते "पुखराज" बहुत तरक्की कर ली हमने,
हमारे विचारों की गुणवत्ता, नैतिकता का स्तर घटा है।-
हुआ है इश्क़ ख़ुद से ज़िन्दगी भी गुनगुनाने लगी है,
मिटा मन का डर ये ज़िन्दगी हौसला बढ़ाने लगी है।
ख़ुद के क़रीब आ गया हूँ जीने में भी मज़ा आ रहा,
आशावादी बन गया ज़िन्दगी सपने सजाने लगी है।
सब कुछ पानी की तरह साफ़ नज़र आने लग गया,
उलझनें मिट गई जीने के नए कायदे बताने लगी है।
अपनी कमियों को पहचानने में आसानी हुई बहुत,
ये कमियाँ, नादानियाँ कैसे दूर हो समझाने लगीं हैं।
करके देखिए "पुखराज" तुम भी ख़ुद से अब इश्क़,
तुम भी ये कहोगे राहें ख़ूबसूरत नज़र आने लगीं हैं।-
शिक्षा के आयाम अब नए-नए रच रही बेटियाँ,
सफलता के नए-नए सौपान चढ़ रही बेटियाँ।
गुलामी की बेड़ियों तोड़कर आसमां में उड़ रही,
अपनी मेहनत के दम पे आगे बढ़ रही बेटियाँ।
पढ़कर-लिखकर वह समझदार जिम्मेदार बनी,
झूठ,पाखंड,अनैतिक कार्य से बच रहीं बेटियाँ।
उच्च पद पा-कर भी सँस्कारों को नहीं छोड़तीं,
सादगी ओढ़ के हर क़िरदार में जच रही बेटियाँ।
दुखों का पहाड़ टूटें "पुखराज" पर टूटती नहीं,
मुश्किल साचों में ढल क़िस्मत गढ़ रहीं बेटियाँ।-
सफ़र का अंजाम जो भी हो चाहत है ख़ुशी से ज़िन्दगी चलें,
मंजिल से ज्यादा मज़ा सफर में है इन रास्तों से दोस्ती चलें।
स्वास्थ्य ठीक नहीं तो सब होकर भी बोझ लगती ये ज़िन्दगी,
पैसा कम हो भले ही सुकून हो कि ज़िन्दगी अच्छी भली चलें।
कर्म का फ़ल भुगतना ही पड़ता ऐसे ना हो कि सहा ना जाए,
औरों का दिल दुखा कर बनकर हम क्यों भला मतलबी चलें।
दोष ख़ुदा को क्यों दें उसने सबको अच्छा सच्चा बनाया था,
असली मज़ा तब है जब बन के पहले से बेहतर आदमी चलें।
यह ज़िन्दगी का सफर भी "पुखराज" कितना अजीब होता है,
जो भी कमाया सब यहीं पर छोड़-छोड़ यहाँ से अजनबी चलें।-
थक गया है आदमी ज़िन्दगी के झमेलों से,
मन उब गया उसका मेल-मिलाप, मेलों से।
किसी से मिल के कोई ख़ुश नहीं होता यहाँ,
ज़िन्दगी झोल हो गई सजी झूठ के खेलों से।
ग़लत करने से पहले सोचता नहीं है कुछ भी,
हर पल भय में बीत रहा डर लगता जेलों से।
उत्साह-उमंग बची ही नहीं है मन में बिल्कुल,
थक गया है वो ज़िन्दगी की मार से, थपलों से।
आ अब दूर चलें "पुखराज" कहीं इन सबसे,
ज़िन्दगी को नया पर्याय दें सुकून भरें पलों से।-