सादगी में रहकर ही मुझे अपना क़िरदार निभाना है,
ज़मीं से जुड़े रहकर ही मुझको ये आसमां छूँ जाना है।
कोशिश यहीं है मेरी मानवीय गुणों को बनाए रखूँ मैं,
अपने कर्म एवं वचन से किसी का न दिल दुखाना है।
अनुशासन में जी-कर अपना जीवन आसान पाता हूँ,
मर्यादा में रहकर ही मुझे अपना ये जीवन बिताना है।
इँसानियत को ही सच्चा, सबसे बड़ा धर्म मानता हूँ मैं,
जाति-धर्म में ना पड़ इँसानियत की राह पे चलाना है।
कोशिश यह रहती मेरी सच को सच झूठ को झूठ कहूँ,
सीख-सीखकर ख़ुद को हरदम राहों में आगे बढ़ाना है।
जितना दिया मालिक ने उसमें ख़ुश हूँ कहें "पुखराज"
बीतते वक़्त के साथ ख़ुद को बेहतर इँसान बनाना है।
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