इन दूरियों से कहो ऐसे भी ना सताएँ मुझे,
तेरी यादों से कह दो ऐसे ना रूलाएँ मुझे।
जबसे तुम्हें देखा तेरे सिवा कुछ याद नहीं,
यह मोहब्बत झूठे ख़्वाब ना दिखाएँ मुझे।
रात-रात भर मुझे नहीं सोने देती तड़पाती,
हवा तेरी मोजूदगी ना महसूस कराएँ मुझे।
ढूँढता फिरता हूँ तेरा अक्स जहाँ भी जाऊँ,
अपनी सादगी से कहो ना आजमाएँ मुझे।
तुम ना भी कहो "पुखराज" कोई बात नहीं,
कहो वक़्त से फ़िर तुझसे ना मिलाएँ मुझे।-
भूलाकर ये गिले-शिकवे हर पल ही मुस्कुराओ तुम,
पालकर बेतहाशा ख्वाहिशें खुद को ना सताओ तुम।
जीवन में कुछ चीजों का भ्रम बना रहें तो ही अच्छा है,
फ़िर अपना नहीं रहता कोई भी यूँ ना आज़माओ तुम।
जैसी दुनिया चाहते हों पहले तुम ख़ुद भी तो वैसे बनों,
गिरते हुओं को सहारा देके उनका हौसला बढ़ाओ तुम।
चाह है खुशियाँ मिलें तुम्हें राहों पे खुशियाँ बाँटते चलो,
दिखावा बंद कर सादगी में रहकर जीवन बिताओ तुम।
नफ़रत की आग में जलेगा घर तेरा भी फ़िर "पुखराज"
छोड़कर जात-पात इँसानियत की अलख जगाओ तुम।-
आने लगीं है रास तुम्हारी सोहबत अब हमको,
कह दिया दिल ने हो गई मोहब्बत अब हमको।-
कोई ख़ुशी से तो कोई कर रहा बसर तन्हा,
कोई मोजों में तो कोई काटता सफ़र तन्हा।
डराते ये रास्तों के सन्नाटें हाल बेहाल किया,
क़दम-क़दम पर है ज़िन्दगी का असर तन्हा।
यूँ लगता जीना भूल चुके है अब हम यहाँ पे,
लाख कोशिश के बावजूद हर कारगर तन्हा।
लुत्फ़ जीने का उठाते तो कहते सफ़र सुहाना,
उलझनों में उलझे भटके इधर से उधर तन्हा।
सुकून कैसे मिलता जब यह मन काबू में नहीं,
बंजर ज़मीं पर खिलते शुष्क फ़ूल शरर तन्हा।
तन्हा तू ही नहीं है "पुखराज" अकेला यहाँ पे,
ढूँढा तो पाया मैंने यही हर दिल हर दर तन्हा।-
तेरी छुअन से रूह का ज़र्रा-ज़र्रा, ये जिस्म का रोम-रोम हर्षाया है,
कर दो बोसों की बारिश तेरे लिए ये बदन ये यौवन जो गदराया है।-
उतरते तेरी यादों के बादल गुज़रती भीगी रातें,
कितना बेबस कर देती हैं ये तन्हा बिखरी रातें।
तुझसे बिछड़ने का ये ग़म मुझे सोने नहीं देता,
तेरी यादों के जुगनू से रोशन होती जलती रातें।
इक-इक लम्हा सदियों सा गुज़रे तुम बिन यहाँ,
सुन-कर रो दोगे तुम कैसे कटती हैं चुभती रातें।
क्या भूल हुई जो तुने मुझसे फ़िर मुँह फेर लिया,
सोच-सोच कर परेशान तड़पाती ये उलझी रातें।
गुज़रेगी "पुखराज" ज़िन्दगी अब यादों के सहारे,
मुमकिन नहीं लौट-कर आना वहाँ लें पहुँची रातें।-
हमको नहीं मंज़ूर झूठ की बुनियाद पे बनें पहचान,
बैठे-बिठाए मिल जाए सब बीतें ये जीवन आसान।
चाह बेशुमार प्यार मिलें हर दम ही अपनों का साथ,
ज़मीं से जुड़ा रहूँ नेकियों के दम पे छूँ लूँ आसमान।
किसी के दुखों की नहीं ख़ुशी की ही वजह बनूँ मैं,
हर पल जी भरके जीऊँ मैं साथ में हो कम सामान।
अहं कभी ना आए जीवन के किसी मोड़ पर मुझमें,
भूलूँ ना बड़ों के दिए संस्कार कभी उनका अहसान।
जिंदगी थकाएगी "पुखराज" पर हिम्मत ना हारुँ मैं,
हार से टूटूँ नहीं जोश भर करूँ फ़िर नया आह्वान।-
दुनिया बेहद ख़ूबसूरत जहाँ जीवन का हर खज़ाना है,
यहाँ सुख-दुख दोनों का बारी-बारी से आना-जाना है,
लगन हो तो हम सीख-कर भी हर मुकाम पा सकतें है,
पर ज़रा सम्भल कर हर क़दम तुम्हें झूठ को हराना है।-