जो प्रेम देह आधारित है ,उस प्रेम की निश्चित ही समाप्ति है।
जो प्रेम आत्मिक है वो आदि अनादि अनंत है।
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वो अनादि, वो अनंत सा
वो उजला, वो भ्रमंत सा
वो चक्षुओं के सुकून सा
वो रेशम के कोकून सा
वो बहती तरंगों सा
वो आसमान की पतंगो सा
वो भक्त के ईश्वर सा
वो अर्द्धनारीश्वर सा...-
"प्रेम"
"सृष्टि के पहले,, और
"सृष्टि के बाद,,
मतलब "कलिकाल" से "अनादि" हूँ मैं
भरी "बरसात" में जैसे ,,
"फसलों" की बर्बादी" हूँ मैं,,,
अब बस
उनकी "आदों" में जीने का आदि" हूँ, मैं ,,,..
"परमात्मा"-
मेरे सरकार, आप ही आदि,
आप ही अनादि हो सरकार
आप ही बस आप ही मेरे मालिक
साँवरे.... अंनत का सार हो
रग रग मे बहता लहू आप ही
आप ही जीवन की रसधार हो
साज आप ही श्रृंगार आप हु
आप ही जीवन का आधार हो
हृदय आप ही मेरे सरकार हो
धड़कन आप ही मेरे माधव,
आप ही मेरा घर संसार हो..
जय श्री राधे राधे.. जय श्री राधेकृष्णा..
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वो कहता है की थाली बजाओ
भाई लोग पराते फोड़ देते हैं।
वो कहता है दिए जलाओ
भाई लोग बम पटाखे फोड़ देते है
ये परम्परा अनादी काल से चली आ रही है।
प्रभु ने कहा हनुमान ,
सीता मय्या का पता लगाकर लाओ
ओर हनुमान जी लंका फूंक आये-
जब आप प्रेम में होते हैं
और ओस की हर बूंद, पेड़ का हर पत्ता
और धरती का हर कण जान लेता है
कि आप प्रेम में है।
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किसे को देने से कम नहीं होता
खुदा सिर्फ तेरे लिए नहीं देता
दवाओं में इतना असर नहीं होता
दुआओ का असर कम नहीं होता
कभी देकर देखो कोई खुशी
वापस आएगी लौटकर चौगनी
ईश्वर ने तुम्हे इस काबिल तो किया
किसी की मुस्कुराहट की वजह बना दिया
बार बार धन्यवाद कहना ईश्वर को
प्रणाम उस अनादि अनाश्वर को-
ना मन हूँ, ना बुद्धि, ना चित अहंकार
ना जिह्वा नयन नासिका करण द्वार
ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता
जगत चेतना हूँ, अनादि अनन्ता
Mr. Kailash Kher, Dr. M
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