तुम करो पैरवी अपने इश्क़ की मैंने शिद्दत से मोहब्बत की है वकालत नहीं
गुनाह मैं रखकर तुझे बरी करता हूँ जा फिर ना मिलेगी ऐसी अदालत कहीं
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कभी मिलों तो बताएं हम ,
इस चाँद पर दाग़ कितने हैं, सारे गिनवाए हम !!
बहुत इल्ज़ामों से नवाज़े गए हैं,
बेबुनियाद है सारे कहकर,
अदालत से तुम्हारी अर्जी खारिज़ करवाएं हम !!-
भाई क्या जमाना आ गया हैं आज कल,
लोग भगवान को भी कुछ नाही समजते !
बिचारे अदालत मे खडे रहकर भी,
गीता पर हाथ रखकर सब के सामने झूट बोलते हैं !
💖💝 जय गजानन 💝💖-
मेरी अदालत
बात बात पर न कर सजा ए मौत मुकर्रर
कभी तो उम्र कैद से काम चलना चाहिए...
ये जंग मैं अक्सर लड़ती हूँ
खुद ही खुद को
कटघरे में खड़ा करती हूँ
कई सवाल और जवाब
हर जवाव पर घेराव......
कोई दलील न कोई बचाव......
हज़ार दफ़ा,धारा में खुद को लपेट
हर कर्म की सज़ा मुक़र्रर करती हूँ
ये जंग मैं अक्सर लड़ती हूँ
हो जग से छुपता कोई राज गहरा ....
वक़्त का मारा कोई खाव सुनहरा....
आता बेख़ौफ़ सजा कर सेहरा...
होती सबकी सुनवाई
सबका न्याय करती हूँ
ये जंग मैं अक्सर लड़ती हूँ
खुद ही खुद को
कटघरे में खड़ा करती हूँ ।।
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क़ातिल को सजा भी कुछ नहीं ..
आशिक़ था ?
अदालत में उसने कहा भी तो कुछ नहीं ...-
इलज़ाम तो बहुत है
पर सजा कौन देगा!!
अदालत भी तेरी है
और खुदा भी तेरा!!-
ये इलजाम तो तुम पर भरी अदालत में शब्दों ने लगाया हैं, आखिर इनके वजूद में दर्द लिखने के हकदार हो तुम..!!
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अदालत-ए-इश्क़ में पेशी है उन हवाओं की...
गुज़र कर जिनसे कुछ-कुछ हुआ था मुझे !!-
पुनर्जन्म के सिद्धान्त की ईजाद दीवानी की अदालतों में हुई है, ताकि वादी और प्रतिवादी इस अफ़सोस को लेकर न मरें कि उनका मुकदमा अधूरा ही पड़ा रहा। इसके सहारे वे सोचते हुए चैन से मर सकते हैं कि मुकदमे का फैसला सुनने के लिए अभी अगला जन्म तो पड़ा ही है।
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