जाने क्यों समझ नहीं आती जिंदगी अजीबोगरीब मंजर दिखाती जिंदगी प्यारे ख़्वाब तोड़ चली जाती जिंदगी मुश्किलों से नहीं घबराती जिंदगी फिर क्यों नहीं सीख पाती जिंदगी अंधेरों और उजालों के इस सफ़र में दौड़ दौड़ क्यों थक जाती जिंदगी इंसानियत बेच दी चंद पैसों के लिए लाशों की भी बोली लगाती जिंदगी सांसों को खरीदकर महंगी दरों पर बेबस लाचार काम चलाती जिंदगी मजबूर मगर जीने के लिए जग में जाने कैसे कैसे बिक जाती जिंदगी कहीं चैन की छांव के तले बैठी कहीं वक्त की धूप में पांव जलाती जिंदगी लड़ती झगड़ती गिरती संभलती देखो फिर भी कैसे चलती चली जाती जिंदगी