हे स्वरकोकिला हे, वीणावदिनी माॅं!
मेरे मन में विराजित अंधकारमयी
विकारों को दूर करो माॅं।
नये और ज्ञानमयी स्वरों को मुझे
प्रदान करो माॅं, अपनी छाया में
रखकर मेरा सहारा बनो माॅं।
रख कर अपना हाथ मेरे सिर पर,
मेरा जीवन उजियारा करो माॅं।
मेरी बेरंग - सी दुनिया में कुछ
रंग - बिरंगे रंग बिखेर दो माॅं।।
हे वीणावदिनी माॅं, ज्ञान, वाणी,
बुद्धि, विवेक, विद्या का आशीर्वाद
मुझे दे दो, सफ़लता से रूबरू करा दो।-
#६,अधूरी सी मुलाक़ात
अरे एक उम्र बाद मिले हो तुम बिल्कुल नहीं बदले
अभी भी नज़रें ठीक से मिला नहीं पाते और हम भी कहां बदले अभी भी आंखों में देख कर बात करने की आदत गई नहीं मेरी ,
दरअसल अब भी हम लोगों में वहीं सच्चाई ढूंढ़ते है जो बरसों पहले ढूंढ़ी थी तुममें ,
क्या हुआ जल्दी में हो , घबराओं मत आज क्या ,क्यूं, कैसे? जैसे बेतुके सवाल नहीं पूछेंगे
भूल गए आखिरी दफ़ा भी ज्यादा सवाल जवाब नहीं किया, एक उम्र साथ भी तो गुजारी थी तो सारे सवालों के जवाब मालूम थे मुझें ।
अच्छा ये बताओ अब भी रात को रामायण लगा कर सोते हो अकेले डर लगता है तो ,अब भी कोई है जो तुमसे कृष्ण - राधा संवाद करता हो, कोई है तुम्हारे ज़िन्दगी में जिसे अब भी सेरलॉक होम्स और games of thrones की सीरीज एक हफ़्ते में देख जाने की शर्त लगाते हो? हम तो एक हफ़्ते में दोनों देख गए थे, क्या अब भी कोई है जो नोबेल की कहानी पढ़ कर तुम्हें सुनाने बैठती है कम शब्दों में, कोई है जिसे मसाला फिल्मों और हिट फिल्मों से ज्यादा दिलचस्पी पसंदीदा कहानी और कलाकारों में है, कोई है जो साल भर रिलीज होने वाली फिल्मों की लिस्ट निकाल कर पहले बता देती है कौन कौन सी देखनी है, और कौन सी पिटनी है
कोई है जो दिल आशना है का एक गाना छत्तिश बार सिर्फ इसलिए सुनती है कि उसके बोल को तुम समझ जाओ की अच्छा ये है मेरी ख्वाहिश,
(Read captain 💕)-
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🎸 शिक्षक के साए में उत्थान पलता है
नए 💐भारत का दीपक जलता है।
बनकर ईमानदार करो 💐कर्तव्य,
आपसे ही समाज का स्वरूप बदलता है।
🎸Simpleton _बुद्धू
✍️Modals ऐसी सहायक क्रियाएँ होती हैं जिनका प्रयोग वाक्य में मुख्य क्रिया के साथ किया जाता है ताकि किये जाने वाले कार्य की समर्थता, सम्भावना, निश्चितता, इजाज़त और आवश्यकता व्यक्त की जा सके। जैसे can, must, may, might, will, would, should. इन सभी का प्रयोग अन्य verbs के साथ ability, obligation, possibility इत्यादि बताने के लिए होता है।
💐सरदार पूर्णसिंह (17/02/1881 )
भारत के देशभक्त, शिक्षाविद, अध्यापक, वैज्ञानिक एवं लेखक थे। द्विवेदी युग के श्रेष्ठ निबंधकार सरदार पूर्ण सिंह का जन्म एबटाबाद इटावा जिले सलहद गांव में 17 फरवरी सन् 1881 ईसवी में हुआ।सच्ची वीरता, कन्यादान, पवित्रता, आचरण की सभ्यता, मजदूरी और प्रेम और अमरीका का मस्ताना योगी वाल्ट व्हिटमैन आदि प्रमुख निबंध हैं।
✍️✍️भुवन सीतापुर
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हे वीणावादिनी!माँ शारदे श्रृंगार हो तुम साज का
हे ज्ञान दायनी माँ सरस्वती भण्डार हो तुम ज्ञान का
माँ शारदे ममतामई मुझे ज्ञान का वरदान दो
हे माँ सरस्वती अम्बे मेरा अज्ञान का तम हरो
मिट जाये दुर्बुद्धि मेरी माँ विमल मति दो
अज्ञान हरो सद्बुद्धि दो माँ ज्ञान का प्रकाश दो
आये शरण में माँ तेरी निर्बल हैं हम अज्ञानी हैं
मिट जाये दुर्बुद्धि दुर्गुण अंतर्ज्योति का प्रकाश दो
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हे स्वर की देवी वीणावादिनी माँ स्वर के बाण चलाओ
अपने भक्तों के ऊपर माँ अब प्रेम सुधा रस बरसाओ
मणि मुकुट आपके सिर सोहें गले मोतियों की माला माँ
तीनों लोक में छवि आपकी, मन को आनन्दित करें माता
विद्या-बुद्धि-ज्ञान, की देवी हमपर भी इतना करम कर देना
कर के अपनी कृपा दृष्टि माता मन के सभी विकार हर लेना
जिसपर आपकी कृपा दृष्टि हुई माता वो जग में विख्यात हुवे
बाल्मीकि, तुलसीदास, सूरदास हो या वो कालीदास हुवे
माँ तुम ही अम्बा,हो तुम ही काली,तुम ही जगदम्बा हो माँ
तुम ही सर्वज्ञ अविनाशी,तुम ही आदि अवलम्बा हो माँ
हे सुर की देवी सुर के सभी सातों स्वर अब छेड़ दो
हृदय के कुलषित भाव हरों माँ हमकों भी सात सुरों का वर दे-दो
हे स्वच्छ-शीतल-नदियां,सी निर्मल हृदय वाली माता
हमारे हृदय को भी दो शीतलता अब इसको निर्मल कर दो
अपने आँचल की शीतल छाया में हर पल हमकों रखना माँ
हे मृदुभाषिणी, माँ शारदे खुशियों की सौगात हमें देना माँ-
हे वीणावादिनी माँ हे शारदे माँ
हमको ज्ञान का
वर दे जीवंन में प्रकाश का सवेरा
कर दे हमको बुद्भि का
वर दे हे हसंवाहिनी माँ हे
ज्ञानदाहिनी माँ हमको तु
आशीष दे जीवंन का
अन्धंकार मिटा सुर्य का तेज
भर दे ऐसा वर दे माँ-
हे वीणावादिनी!ऐसा वर दे,
तिमिर मिटे जीवन मे खुशिया भर दे।
मिटा अँधेरा जीवन से
जीवन मे उजियाला कर दे।
हो सभी के स्वच्छ विचार ,
सद्बुद्धि का वर दे।
द्वेष मिटा सभी के दिलो से ,
दिलो में प्यार भर दे ।-
विद्या शिक्षा की देवी हे वीणावादिनी माँ
सौम्य रूप शुभ रंग धवल वस्त्र धारिणी माँ
ज्ञान विवेक बुद्धि पवित्रता की प्रतिमूर्ति माँ
गीत संगीत राग स्वर अक्षर ज्योति धात्री माँ
सभी प्राणियों में चेतना रुप में विद्यमान माँ
बौद्धिकता संपन्न हो मन्द बुद्धि करें गुणगान माँ
बसुधैव कुटुम्ब ,निस्वार्थ सेवा भाव प्रदायिनी माँ
आत्मोत्थान कर जीवन सफल कल्याणकारी माँ
कमल पुष्प सदृश स्वच्छ बना श्वेत पुष्प आसीना माँ
सर्वगुण सर्वधर्म समभाव सबकी पावन बुद्धि बना माँ
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चाह नहीं मैं, इस जगत में पूजा जाऊँ,
चाह नहीं मैं, विद्वता समान कहलाऊँ।
चाह नहीं मुझ पर, कोई उपकार कर दे,
हे वीणावादिनी, हे विद्यादात्री माँ शारदे।
चाह नहीं जग में, मैं अपना नाम कमाऊँ,
चाह नहीं हृदय में, अभिमान को मैं लाऊँ।
चाह नहीं खुशियों से, दामन मेरा तू भर दे,
हे वीणावादिनी, हे विद्यादात्री माँ शारदे।
चाह इतनी सी, मैं अभिमानी ना कहलाऊँ,
चाह यही मैं सदा असहायों के काम आऊँ।
मन से मेरे राग द्वेष को, दूर तू मेरा कर दे,
हे वीणावादिनी, हे विद्यादात्री माँ शारदे।-