काचँ सा चुभता है यकीन टूटा हुआ
अब विश्वास किसी पर होता नहीं
गैरों की छोडीये अपनो वो जख़्म
दिये जो बताते नहीं जाते और सहे भी नहीं जाते
मन अब पत्थर सा हो गया है आशाओं का
सुरज अब डुब गया है
खुद पर अब भरोसा नहीं होता जिन्दगीभर
का गम हमें इनाम मे मिला है
किसी अपना कहे किसे पराया हर दर्द
दिल से बयाँ अब होता नहीं-
शिक्षक अपने विधार्थी को
जीवन की नयी राह दिखाते
है और सही गलत का फर्क
बताते है
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कतरा कतरा पिघल रही है ज़िन्दगी सासों की डोर टुट
रही है धीरे धीरे
मौत भी अब मेरा इम्तिहान लेने लगी हैं
खुद से अब मैं अनगिनत सवाल करने लगी हूँ
हर तरफ बेबसी का आलम सा लगता है
सीने मे खजंर से चुभने लगे है
धडकनों पर एक तुफान सा मडराने लगा है
रुह भी अब जिस्म से अलग होने लगी है
दिल मे एक एक हलचल सी होने लगी है
सुबह और शामों को अब मुझे तेरी कमी महसूस होने लगी है
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मोहब्बत अधुरी रही पर धड़कनों पर तेरा नाम रहा मेरे लबों पर एहसास तेरे प्यार का रहा कुछ अधुरा रहा तेरे बिन पर खामोशी सब कुछ कह गयी
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वक्त रहते पहचान लो
वरना ना रिश्ते होगे
ना अच्छे दोस्त होगे
आसपास-
तुझे गजल कहूँ या शायरी
तुझे चादँ कहुँ या चाँदनी
तु मेरा आफताब तुझे धड़कनो
में रख लूँ मदहोश है ये फिजा निराली
तुझे अपनी नजरों में छुपा लूँ-
कान्हा तेरी मुरली की धुन मोहित करती है
राधा तेरे सगं रास रचाती है
सब जग तेरा दिवाना है
तु तो नट गोपाला है-
कौन चाहता था पैरों में घुघँरू बाधँना
मैं तो छूना चाहती थी आसँमा को
मजिलं की तालाश मे दर बदर भटक
रही थी आँखो में सपने बुन रही थी
और वक्त ने हंसी सितम यु किया
हमें अपने इशारों पर नाचने को मजबूर किया-
दर्द के धागे में तेरे हिज़र के फुल
अपने गुलसितां में दफन किये बैठे हैं
सुलगते सवालों से अजान बने बैठे है
खुद को ही भुल बैठे है
हस्ती तेरे लबों पर रोशन करके
खुद को अपनी ही कब्र में दफन कर बैठे हैं-
वो चंद अल्फाज तेरे मेरे दिल में सिमट के रह गये
हम उन्हें देखते ही रह गये और वक्त गुजर गया
जब होश में हम आये तो उनको दुर खुद से ही पाया
दिल की हसरत दिल में रह गयी-