माँ से माँ तक का सफ़र बड़ा अनमोल होता है,
ना कोई सौदे बाज़ी इसमें न कोई मोल होता है।
प्रेम त्याग बलिदान स्नेह की मूर्ति होती है माँ,
माँ का प्रेम जहाँ में सबसे निः स्वार्थ होता है।
माँ की उत्पत्ति हुई अस्तित्व से सृष्टि रची,
माँ से माँ के सफ़र में यह महसूस होता है।
होता ये मुश्किल सफ़र बाधाएँ भी अनगिनत,
होती बच्चों का सुख माँ का प्रेम बिन तोल होता है।
जब आती है ख़ुद माँ बनने की बारी कृष्णा"
तब समझ आता है माँ का महत्व क्या होता है।-
हां! मै कोई बड़ी लेखिका तो नहीं, पर क... read more
माँ से रिश्ता हमारा होता है बड़ा ही अनमोल,
माँ की ममता का कोई चुका न पाया है मोल।-
जी मुझे main Challenge का winner
बनाकर मेरे उत्साह वर्धन के लिए दिल से
धन्यवाद आपका आदरणीय प्रिय मंच 🙏🙏-
परी बहुत ही होनहार और बहुत ही निर्भीक बच्ची थी उसका मन पढ़ाई में बहुत ही लगता था परी हमेशा यही सोंचती थी कि उसे अपने माता पिता का सपना पूरा करना होगा क्योंकि परी अपने माता पिता की इकलौती संतान थी एक दिन परी अपने क्लास में पढ़ाई कर रही थी तब तक उसकी नज़र
एक बोर्ड की तरफ़ गई उसने देखा कि
छोटे क्लास की एक बच्ची को करेंट लग
गया है परी भाग कर गई और तुरंत उसने
मेन स्वीच की लाईट काट दिया फ़िर जल्दी
से अपने दोस्तों का सहारा लेकर हॉस्पिटल
गई परी की बुद्धिमानी से आज बच्ची की
जान बच गई और प्रिंसिपल और टीचरों ने
परी की बुद्धिमानी को सराहा और सम्मानित
किया बड़ी होकर परी एक पॉयलेट बनी और
माता पिता का सपना साकार किया-
कतरे कतरे का दुश्मनों से अब हिसाब होगा,
कब तलक हम सबको अत्याचार सहना होगा।
रौद्र रूप करके अब ऐसा ही तांडव करना होगा,
शत्रु जिनके आगे टिकता नहीं वो भारत माँ के दुलारे।
व्यर्थ न जाने देंगे हम जो किए पीठ पर वार हमारे,
अपनी औक़ात दिखाया है जो धर्म पूँछ कर हैं मारे।
नमन है उन माताओं को को जने हैं ऐसे लाल यहाँ,
वो धड़कन हैं भारत माँ की सबकी आँखों के ये तारे।
सम्हल के खेलो तुम भारत से सरकार और सेना साथ है
कृष्णा" मत छेड़ों इन्हें कपास समझ ये हैं जलते अंगारे।-
//त्रिवेणी लेखन//
स्वर्ग सी कश्मीर की वादियों को कर गए बदनाम,
धर्म के नाम पर मार डाला उन बेरहमों ने सरेआम।
क्या ख़ता थी कृष्णा"जो कुछ लम्हे ही थे साथ बिताए।।-
कैसे और किसे सुनाएँ ये किस्से ज़िंदगी के,
वो पल अब रहे नहीं जो थे कभी ख़ुशी के ।
छुपा लिया हर राज़ दिल में कहा न किसी से,
कैसे सुनाएँ बातें किससे उनकी बे रूखी के।
हर कोई समझ न पाया दर्द-ए-दिल की दास्ताँ,
कृष्णा"कोई न जान पाया भेद दिल की सादगी के।-
जब थी ख़ुशहाली तो ज़ालिमों
ने गद्दारी की हद कर डाली
कौन पूँछे उस बाग़ को कृष्णा"
जिसकी जड़ ही काटे वो माली-
तुम्हारी छुवन से दिल का खिला गुल महक उठा गुलशन सारा,
रहे यूँ ही साथ तेरा मेरा प्यार से महके ये सारा जीवन हमारा।-
कुछ रह गए अधूरे ख़्वाब ज़िंदगी के अपने,
कुछ रह गईं ज़िंदगी की अधूरी कहानियाँ।
कुछ ज़ख़्म ऐसे थे जिनके रह गए दाग़ दिल में,
कुछ लम्हों की सारी मिट गई हैं निशानियाँ ।
कुछ यादों में अपनों की छवि छलकती हैं तो,
कुछ रिश्तों में हुई हैं बेरहमी और बेईमानियाँ।
कुछ अन चाहे पलों का डेरा हुआ इस दिल में,
कुछ चाहतें कुछ हँसते पलों की हुई रवानियाँ।
ऐसा आया वक़्त ज़िंदगी बन गई ज़िंदा लाश कृष्णा"
एहसास न रहा ख़ुशियों के पलों की कब गईं जवानियाँ।-