Kiran Krishna Pathak   (किran कृष्णा)
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Joined 29 December 2019


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हरतालिका तीज की हार्दिक शुभकामनाएँ
🌹🌹🌹🙏🙏

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कितना भी ख़ूबसूरत हो यह घर उनका,
कितनी मनोहर हों चाहे यह खिड़कियाँ।
ग़र इसमें स्त्री को दुःख दिया जाता है तो,
उन दीवारों में दबी होतीं....सिसकियाँ।

जो छोड़ कर आई बाबुल का आँगन,
छोड़ कर वो अपने हाथों की गुड़ियाँ।
कहने को तो वो है महलों में मगर तो,
सुख बनाते हैं उनसे कोसों की....दूरियाँ।

जिनपर माँ के आँचल का साया रहता था,
पिता का प्यार जिनका सहारा बना रहता।
था भाई बहनों का अनोखा अनमोल प्यार,
वो स्कूल जाने की खिलखिलाती...गलियाँ।
पूर्ण रचना कैप्शन में. ....

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25 AUG AT 9:45

नाज़ुक सा दिल है इसे रूह से समेट रखना
इसे तोड़ न जाना मुश्किल है तन्हा रहना

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24 AUG AT 20:47

"वक़्त वक़्त की बात"
कल कारवां था संग मेरे आज तन्हाई साथ है,
कल जहाँ रोशन था अपना आज जहाँ ख़ाक़ है।

एक वो वक़्त था जब साथ थे वो हमारे अपने,
आज वो वक़्त है के अब तो यादों की बारात है।

वक़्त ने चाहा जिसे उसको बर्बाद किया इसने,
ऐसा ज़ख़्म दिया है वक़्त दर्दों का कारवां साथ है।

कहना तो काम है इस ज़ालिम बेदर्द ज़माने का,
कल अपने थे आज पराए हुए वक़्त वक़्त की बात है।

वक़्त की रौशनी में सच्चाई नज़र आती है कृष्णा"
कल ख़ुशियों का दिन था और आज ग़मों की रात है

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24 AUG AT 16:52

चाय में बढ़ जाती है और मिठास
दोस्तों संग बन जाते हैं वो पल ख़ास

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23 AUG AT 22:49

यादें उनकी जाती नहीं ना ही दिल को आता क़रार
हर पल रहता है नज़रों को उनके दीदार का इंतज़ार
एक प्रियतम के बिना जैसे सूना सूना लागे है ये संसार
कृष्णा"एक बार तो आ जाओ ये व्याकुल मन रहा पुकार

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23 AUG AT 16:37

मोहब्बत की दुनिया में अपना जहाँ बसाऊँ मैं,
मेरे सनम तेरी झील सी आँखों में डूब जाऊँ मैं।

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23 AUG AT 16:08

किताबें

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23 AUG AT 9:53

"याद न जाए"
बीते दिनों का वो गुज़रा ज़माना है अपना,
उन्हीं यादों के सहारे पल पल जिए जाते हैं।

कुछ खट्टे मीठे उन पलों की वो निशानियाँ,
सोंचते हैं तो कभी रोते कभी मुस्कुराते हैं।

याद हैं वो दिन जब वो मेरी ज़िंदगी में आए थे,
वो सुनहरे लम्हें आज भी दिल को गुदगुदाते हैं।

याद न जाए अब उन बीते दिनों की दिल से,
एक तरफ़ा मोहब्बत बस हम निभाए जाते हैं।

फूले न समाए थे"जब हुआ था मिलन कृष्णा"
आज भी उन बीती यादों को गले लगाते हैं।

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22 AUG AT 15:31

"एक राही"
एक राही सडक पर चल रहा था वह देख रह था कि यह स्थिर होकर भी इसपर कितने लोग व वाहन चलते हैं कितने पहनावे हैं इसके कहीं कच्ची सड़क धूल मिट्टी वाली तो कहीं डामर पत्थर से बनी बारिश के समय में कच्ची व पक्की सड़कें भी टूट फूट जाती हैं
वह व्यक्ति चलता ही जा रहा था रात का वक़्त था
अँधेरा छाया हुआ था कुछ धीमी गति में आवाज़
सुनाई पड़ी जो गूँज के साथ सत्यों को समझा रही
थी जो प्रकृति और मानव के अस्तित्व मूल तत्वों
में निहित थी,पृथ्वी,इसकी स्थिरता का प्रतिनिधित्व करती हुई पांचो तत्त्वों के साथ, अग्नि आग बबूला हो, मैं इस बंद दरवाजे को जला दूंगी वायु:मुस्कुराते हुए मैं तो किसी को हवा तक नहीं लगने दूंगी जल: मैं तो पैरों के नीचे से भी निकल अपना रास्ता चुन लूँगी
इतने में ही वह द्वार खुला और निर्मल नील गगन दिखा
और सारी शक्तियाँ आकाश छूने लगीं जैसे लगा सारी शक्तियाँ उसमें विलय हो गई हों।

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