तेरी चाहतों के रँग में मैंने जीवन रँग डाला,
सब कुछ भुला बैठा दिल चाहत में बेचारा।
तेरी चाहत का रँग ऐसा चढ़ा है मुझपर सनम,
चाहत के रँग के आगे बे'रँग लगे ये जग सारा।
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ज़िंदगी की हर साँस में चाहतों के रँग भरते भरते,
महक गई ज़िंदगी महका तन मन जीवन सारा।
ग़ज़ब की रँगरेज़ निकली सनम ये चाहत तुम्हारी,
रँग डाला अपने ही रँग में सब श्वेत रँग कर डारा।
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चाहतों के रँग रँग गया सतरंगी यह जीवन हमारा,
हृदय में चाहत बहने लगी बन प्रेम की अविरल धारा।
तेरी चाहत को तो बना कर ख़ुदा पूजा है हमनें ,
तेरी चाहत पर है कुर्बान किया यह जीवन सारा।
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जिस तरफ़ देखा आए चाहत के रँग इत उत नज़र,
दिल में बसा कर तेरी मूरत चाहतों के रँग से संवारा।
सब कुछ लुटा कर चाहत पर तन मन उसपर वारा,
कृष्णा" यही चाहत ही तो है जीने का एक सहारा।
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