इश्क़ सी रही नही अब फ़ितरत इश्क़ की..
ये ख़ौफ़ मुझे ख़ौफ़ज़दा रास्तों से बचा लेता है,
देता नही दिमाग अब गवाही दिल की..
ये फैसला मुझे मुज़रिम बनने से बचा लेता है !!
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शुमार नहीं था मेरी फ़ितरत में तमाशा करना,
जानते हम भी सब कुछ थे बस ख़ामोश रहे!!-
प्यार सें मिलना..
और नफरतों सें
सफ़र में बिछड़ना..
तुम भूल जाओ ये दस्तूर
हमें आता है हंस के साथ चलना..-
पँखे की जैसी ही तो है फ़ितरत इंसानी
घूमेंगे जितना उतनी धूल आएगी विचारों की
गतिहीन रहे फ़िर रुका रहेगा सबकुछ
ज़रूरी है बस चलते जाना।-
फ़र्क नहीं मुझें ज़माने की नज़र ए तकरीर से है,
फ़ितरत क्या चीज़ है, जब इंसान बदल जाते हैं!!-
उसने पूछा! क्या ग़म हैं तुझे?
मैंने कहा-
मेरी फ़ितरत में नहीं ग़म बयां करना तेरी वजूद का हिस्सा हूँ तो महसूस कर तक़लीफ़ मेरी😢-
अगर कोई इंसान पास हो
तो उसकी कद्र नही करता और
जब दूर चला जाता है तो उसका
ख्याल हमें जीने नही देता।-
दूसरों में दोष निकालने की
जिंदगी है वीरान दूसरों की जिंदगी में
दखल अंदाज करने की-
नासाज़ तबियत, नाशाद फ़ितरत, नाउम्मीद जरूरत है
कौन कहता है मैंने ज़िन्दगी में कुछ भी कमाया नहीं है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
जिन्दा है मेरी कहानियों में तू हर दम
अलग अलग किरदारों के नए मुखोटों पहन के.....
बिलकुल तुम्हारी फ़ितरत की तरह....
You are always alive in my stories
With different faces of characters...
Just like your nature......-