ज़हन-ए-अर्श पर उड़ रहे हैं, कुछ जज़्बाती परिन्दे, बन के अल्फाज़ बढ़ा रहे है, मेरे दिल की तरंगें, जह़न-ए-वरक़.. जितने पलटते जा रहीं हूं, पुरानी यादों की तपिश में, उतना ही जलती जा रहीं हूं।
उसकी तड़प, उसकी चाहत मेरे ज़हन से नहीं जाती जब भी उसकी कोई कविता मेरी आँखों से है तैर जाती.. मेरा हमसाया, मेरा हमसफ़र यूँ मिलता है यादों में भी अक्सर हाय! उसकी मासूम बातों की ख़ुशबू मेरे दिल से कहीं नहीं जाती..