"इस उल्लू को गाली देनी भी नहीं आती"
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साँसों का ठहरना पलकों का झुकना तो लाज़मी है, ग़ालिब!
उनका मुस्कुराता मुखड़ा देख जो हम भी पागल हुए तो क्या हुए।-
मेरी रचनाएँ उनके लिए नहीं हैं जो इनकी उपेक्षा करते हैं. दुनिया में एक न एक दिन ऐसा व्यक्ति अवश्य पैदा होगा जो मेरी रचनाओं का महत्व समझेगा, क्योंकि यह संसार बहुत विशाल है और समय अनन्त है.
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ये इश्क भी क्या चीज़ है ग़ालिब
एक वो है जो धोखा दिए जाते हैं
और एक हम है,
जो मौका दिए जाते हैं-
तुम पूछते थे न कि अगर यूँ होता तो क्या होता।
सुन ले- ऐ ग़ालिब, आज तू होता तो बहुत रोता।
बड़े महलों के सामने इंसानी वजूद भी पड़ गया छोटा।
जहाँ वो अमीर प्लेट फेकता, वहीं मैं गरीब भूखा सोता।
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हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है-
वो गीले बालों में तौलिये संग,
जब वो अपने झरोखों पे नज़र आती है,
ख़ुदा की क़सम ग़ालिब,
इस दिल के मोहल्ले में दीवाली हो जाती है
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ग़ालिब भी लिखना चाहते हो बारे में जिसके। अब क्या नज़्म लिखूँ 'अभि' मैं बारे में उसके।
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