दिल में वो अब ख़ुलूस कहाँ
कहाँ रहीं अब वो शफकतें
बाक़ी नहीं कुछ भी अच्छा
याद हैं तो बस शिकायतें-
मुलाक़ातें मुखतसिर ही हों तो बेहतर है
लंबी मुलाक़ातें तो अक्सर इम्तेहान लेती हैं
कुछ बाक़ी नहीं रहती बातें दरमियाँ
यह सारे ही राज़ ही लोगों के जान लेती हैं
कितना ख़ुलूस है किस में कौन कितना है बद तहज़ीब
हुनर सब के अंदर का यह खूब पहचान लेती हैं
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भले इस मुखातिब से ख्याल-ए-मुस्तैद बयां ना हो,
कभी ख़ुलूस के अंदाज से समझने की कोशिश तो करो..!
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"ख़ुलूस"
वो तो हो गई मौन, लेकर उम्मीद-ए-इंसाफ-ए-ख़ुलूस!
क्या सचमुच दे पाएंगे उसे सुकूँ, ये मशालें और जुलूस!!-
मेरा 'दर' तो तेरे 'अंदर' ही है............
एक बार 'ख़ुलूस' से मेरा नाम तो लो।
अंधेरे मे भी तेरे दिल मे रौशन हूँ,
मुझे अपना मान पहचान तो लो।💠-
जो बेइंतहा ख़ुलूस है तुझमें यही तो जुनून है मेरा
लाख बचाया मैंने,आख़िर दिल मेरा,हो ही गया तेरा!
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(ख़ुलूस = निर्मलता, निष्कपटता, सत्यता sincerity)
वो "ख़ुलूस" की कसौटी पर खरा उतरता है
उसकी नस-नस में ख़ुलूस का लहु बहता है।-
"ख़ुलूस-ए-दिल से बंदगी करके तो देख,
ख़ुदा हमारे दिल में ही रहता है।।"
- अंजली सिंघल-