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हाथ क्या तुमने छुड़ाया गिर पड़ा
फिर उठा मैं लड़खड़ाया गिर पड़ा-
इक ओर भी दुनियाँ है आके यहाँ जाना है
हर दिल है खूबसूरत, हर चेहरा दीवाना है
क... read more
ये मुलाकात हमसे ना होगी
चाय पर बात हमसे ना होगी
सामने बैठ कर मेरे हमदम
प्यार की बात हमसे ना होगी
इतने हाजिरजवाब हो तुम तो
बात पर बात हमसे ना होगी
झूठ बोले हम आएंगे यारा
ये गलत बात हमसे ना होगी
बात होती है ये गनीमत है
रोज़ भी बात हमसे ना होगी
नींद हमको सता रही इतना
फ़ोन पे बात हमसे ना होगी
धड़कनों की सदा सुनो "रहमान"
लब से हर बात हमसे ना होगी
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फिर से सहरा में कोई फूल खिला
फिर से मौजों पे रवानी आई
धूप में फिर कोई बादल बरसा
प्यार की फिर से निशानी आई
हमने देखा कोई उसके जैसा
तब ये होठों पे कहानी आई
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साथ अब मेरे क्या नहीं होता
जिस्म बस ये फना नहीं होता
रात को उठ के बैठ जाते है
दर्द दिल से जुदा नहीं होता
क्या गुजरती है जान पर मेरी
ये किसी को पता नहीं होता
जिसका होना था हो गया हूं मैं
इश्क हर मर्तबा नहीं होता
हाँ,ये हालात बन गए ऐसे
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
एक मुद्दत के बाद आए हो
कोई इतना खफ़ा नहीं होता
कबके दरिया में खो गए होते
साथ जो नाखुदा नहीं होता
तुम ना होते क़रीब गर मेरे
मोज़िजा ये ख़ुदा नहीं होता
याद "रहमान" तेरी आएगी
काश तुझसे मिला नहीं होता
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उनसे कोई अब आगे आस नहीं
पास होकर भी मेरे पास नहीं
उनको कह दो कि अब चले जाए
उनका कोई यहाँ पे खास नहीं
हम भी ज़िंदा नजर तो आते है
जिस्म में धड़कनों का वास नहीं
जो ये कहते है वो न बदलेंगे
उनको शायद खुदा से आस नहीं
भीगकर इश्क़ में तेरे "रहमान"
आया कोई हमें भी रास नहीं
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आप बस बात से मुकर जाते
जीते जी हम तो यूँ ही मर जाते
चैन फिर भी कहीं नही मिलता
रूठकर चाहे हम जिधर जाते
तुझको पाकर सनम तेरी ख़ातिर
आग के दारिया से गुज़र जाते
बिन तेरे जीना, कोई जीना है
टूटकर शीशे सा बिखर जाते
कब तलक बचपना ये जाएगा
उम्र पचपन है अब सुधर जाते
जिंदगी मौत की अमानत है
इससे बचकर भला किधर जाते
आते जो बनके आइना 'रहमान'
हम भी दुल्हन सी फिर संवर जाते
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वो मेरे साथ अग़र नहीं होती
इश्क़ क्या है ख़बर नहीं होती
हाल ए दिल कुछ मेरा भी ऐसा है
उसके बिन अब गुजर नहीं होती
देखता हूँ जिसे मुहब्बत से
उसकी मुझपे नज़र नही होती
बात करने को दिल तो करता है
बात उससे मग़र नहीं होती
कोई अख़बार बन गया हूँ मैं
मुझमें अच्छी ख़बर नहीं होती
बिन मशक्कत के कुछ भी हासिल हो
उसकी कोई क़दर नहीं होती
जाएगी कब ये बेदिली 'रहमान'
ज़ीस्त ऐसे बसर नहीं होती
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वो मालिक हैं ग़लती कर नहीं सकते।
तुम नौकर हो सब गलती तुम्हारी हैं।।-