जलकुंभी के जाल में फंसी पड़ी है झील, दूर दूर से आकर लोग, बना रहे हैं रील।। नहीं किसी को चिंता फिक्र नहीं किसी को गिल्ट, मोटी चमड़ी वाले अफसर हो गए जब से ढीठ।।
इश्क में गौते लगा रही है देखो काम के वक्त मुझको सता रही है।। दीवानी किस कदर हावी है उस पे सबके सामने इश्क फरमा रही है।। हौले से आकर कंधे पे धरा है उसने हाथ इशारों में जैसे कुछ कहना चाह रही है।। अंखियां देखो उसकी, इश्क से पावस है क्या वो नज़रें मिला के मुझको रिझा रही है।। अजीब है इश्क की फितरत भी हर जोड़ी जो हदों के पार जा रही है।।