आते जाते मुझको सलाम करते हैं मेरे दुश्मन मेरा एहतेराम करते है लड़ते नही किसी से हम मैदाने जंग में दलील देके हम क़त्लेआम करते हैं शख़्शियत चोरी छुपे जीने की नही है जो भी करते हम खुलेआम करते है मुखबिरों के ज़रिए मेरी नस* का पता न कर यही मुखबिर तेरा किस्सा तमाम करते है
सदा गुलाबों की पंखुड़ी सा बिखरता रहा हूँ मैं, न जाने कितने दुःखों को रोज सहता रहा हूँ मैं, सोचता हूँ कैसे जिन्दा रहा मैं काँटों के बीच, सताया है मुझको फिर भी हँसता रहा हूँ मैं।