भीड़ में, भीड़ का ही मैं हिस्सा हो गया,
खास बनने की कोशिश में, आम किस्सा हो गया..!
-
शहर भर में मशहूर है किस्सा मेरा
पर उसे ही खबर नहीं जो है हिस्सा मेरा-
आदत नहीं बनना था तुम्हें
तुम फिर भी बन गए हो
जरूरत नहीं, पर जरूरी सा
ज़िन्दगी का वो हिस्सा बन गए हो
सुबह के पल पल में हर पल साथ रहते हो
दोपहर की धूप में परछाई बन साथ चलते हो
रात सो जाते हो आंखों में मेरी,
नींदों में ख्वाबों के साथ जागते हो
चढ़ती सांसों में खुशबू की तरह,
रगों में बहते हुए लहू की तरह,
धड़कते दिल की कपकपाहट की तरह,
जिस्म का बेहद जरूरी वो हिस्सा बन गए हो
आदत नहीं बनना था तुम्हें मेरी
हां तुम बन गए हो
जरूरत नहीं, पर जरूरी सा
मेरी ज़िन्दगी का वो हिस्सा बन गए हो-
बिखर कर खुद को समेटना सीख लिया है मैंने,
सुना है लोग हिस्सा ले जाते है,
खुद को जोड़ने के लिए।-
वक़्त के साथ देख तेरी क्या अहमियत हो गयी है
पहले तू मेरी पूरी कायनात हुआ करती थी...
लेकिन अब मेरे मोबाइल की गैलरी के बस चंद हिस्सों में है .....-
लम्हा-लम्हा जोड़ कर नग़्मा बना लिया
बस ग़ज़ल को इस तरह तन्हा बना लिया
ज़िन्दगी की भीड़ में रस्ते बदल गए
तीरगी को आज कल अपना बना लिया
बे-ख़बर था इश्क़ से जाता रहा उधर
दर्द-ए-दिल को नोच कर ताज़ा बना लिया
बे-बसी की चोट भी मिलती रही मुझे
बस उसे ही याद का हिस्सा बना लिया
ज़िन्दगी को इस क़दर 'आरिफ़' किया अलग
जिस्म अपना बेच कर मुर्दा बना लिया-
तू जिस डगर चले में वो राह बन जाऊं
ख्वाहिशों की तेरी हर वो तस्वीर बन जाऊं!
मिटा दे तेरी आँखों से जो गम के हर आँसू
मैं तेरी जिन्दगी का बस वो हिस्सा बन जाऊं!!-