पर्दे में छुप के हया बोलती है
जुबां नहीं आंखों से बात कहने दे,
ना खोल अपनी बाहें आसमां की तरह
मुझे धीमे-धीमे ही आज बहने दे,
इकरार मेरा दिल भी जानता है मगर
लफ्ज कुछ अनकहे ही रहने दे,
दर्द दूरियों का खूबसूरत नहीं होता
कुछ तो इस नाचीज़ को भी सहने दे,
ना पंख दे मेरे अरमानों को आज
मैं मिट्टी हूंँ मुझे जमीन पर ही रहने दे !
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