आइए, आज स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण का एक अंश पढ़ते हैं
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मैं विश्व को चुनौती देता हूँ कि संस्कृत दर्शन की समूची व्यवस्था में एक भी ऐसा वाक्य ढूँढ़ कर दिखाये कि सिर्फ़ हिन्दुओं का उद्धार होगा, दूसरों का नहीं।
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जिन्होंने हिंदू, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के विचारों का संग्रह किया,
अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी से अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया,
विश्व धर्म सम्मेलन में अमेरिका के लोगों को भाई-बहन कहकर उनका दिल जीत लिया, जिन्होंने देश और विदेश के युवाओं को प्रेरित किया,
वह महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद जी को समृद्धि ने हमेशा नमन किया।🙏🙏-
पेट अपनी जो जली भूख से रोटी गूगल कर लेंगे
मुसीबत देख गर्दन को शुतुर्मुर्ग सी रेत में कर लेंगे।
बदायूं, हाथरस व अन्य से हमें क्या फ़र्क पड़ता हैं
ऐसी घटना देख हम बेग़ैरत को आँखों में भर लेंगे।
आरामगाह से ही सारे निर्णय उनके लिए अब होंगे
जिनको मरना हैं मेरे हम इल्ज़ाम न अपने सर लेंगे।
पहले रोटी, इज़्ज़त फिर धर्म की बात जो समझ लेंगे
मिलेगी दुआ सुकूँ अपनापन दुःख जो उनका हर लेंगे।-
युवा जीवन ना करो निरर्थक
शिकागो में हिंद संस्कृति का अर्थ
छोटे जीवन को बनाया सार्थक
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स्वाभिमान से जीना
निस्वार्थ सेवा सच्चे भाव के साथ
ईश्वर पे अटूट विश्वास।।
ख़ुद की इच्छा शक्ति को मजबूत करना
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'दृढ़ता ही सफ़लता की कुंजी है'
विवेकानंद जी की यही एक पूँजी है।
युवाओं को सफलताएं सब ज़रूरी है
उनके विचारों की अद्भुत ही सूची है।
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