QUOTES ON #स्वरचित

#स्वरचित quotes

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30 OCT 2019 AT 8:59

कविता से ही कवि बना हूं ।
कविता में ही विलय होगा।
राग नहीं छीनी है किसी की।
मेरा खुद का लय होगा।


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कोई कहता है सुनो जुबान बंद कर रखो
तुम बेचारी हो
कोई कहता अपने सारे ख्वाहिशों को दबा कर रखो तुम अबला नारी हो
कोई कहता घूंघट निकाल के रखो तुम बहू
संस्कारी हो
कोई कहता दिन भर काम करो काम
सुनो तुम नौकरानी हमारी हो

उन सभी के लिए मेरा जवाब
कुछ भी गलत करने पर जुबान सील कर बेचारी बन जाती हूं
मां-बाप की विवशताओ को देख अबला नारी बन जाती हूं
धूप में स्कीन जल ना जाए😜😝👌👌
इसलिए घूंघट निकाल बहु संस्कारी बन जाती हूं
अपनों के मीठे प्यार भरे बोल पाने को दिनभर की नौकरानी भी बन जाती हूं। पर ना तो मैं बेचारी हूं
नहीं अबला नारी हूं
जिसके दम पर सृष्टि सृजन का राह देखती है
जिसके दम पर सृष्टि सौंदर्य का चाह देखती है
हां गर्व है मुझे मैं वही अलौकिक नारी हूं
हां गर्व है मुझे मैं वही अलौकिक नारी हूं।

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चन्द शब्दों में बयां कर दूँ तुम्हें "माँ"
इतनी मेरी औकात कहाँ ?
कई खगालीं हैं मैनें किताबें
पर तुम्हें परिभाषित कर दे ऐसी किसी में बात कहाँ ?

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12 JUL 2022 AT 12:24

कविता
"रिमझिम पड़े फुहार"
रिमझिम पड़े फुहार,नैनों से गिरे जलधार !
बरखा सुहानी आई,जिया करें तुम्हारा इंतजार!

छोड़ दो ना प्रिय परदेश की नौकरिया
आओ करें खेती किसानी गांव चौबारे
रुखी सुखी खायेंगे रहेंगे अपनी दुअरिया
संग-संग रह बसाए अपनी प्रेम नगरिया
रिमझिम पड़े फुहार नैनों से गिरे जलधार...!

कैसे सम्भालूँ तुम्हारे बिन घर परिवार
करूं छोटो बड़ों की सेवा स्वागत सत्कार
गोरू चऊआ की सानी पानी करूं देखभाल
दुध निकालू दही जमाऊं घी बनाऊं मलाई मार
रिमझिम पड़े फुहार नैनों से गिरे जलधार...!

छोड़ मोह परदेश का अब आ भी जाओ दिलदार
मौसम सुहाना निकल ना जाए बदरा छाए बार-बार
दिन बिताऊँ काम कर सब खेती बाड़ी घर द्वार
रतियाँ बैरन बन जाती,जिया पुकारे तोहे बारम्बार
रिमझिम पड़े फुहार,नैनों से गिरे जलधार!
बरखा सुहानी आई,जिया करे तुम्हारा इंतज़ार!!
स्वरचित Radha Singh

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"मौन"

(शेष अनुशीर्षक में)
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24 SEP 2019 AT 21:28

सत्य कड़वा था
तो ज़मीर की
थाली में पड़ा रहा...,
झूंठ मीठा था
लिहाज़ा जुबां पर
चढ़ा रहा...!!!

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18 NOV 2019 AT 16:15

जुबान से निकलती रहीं
अनगिनत बातें...
और ह्रदय खामोश होकर
ढूंढता रहा,
अनकही बातों को
जारी करने का एक सिला....

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24 JUN 2020 AT 15:56

स्त्री इतनी भी जटिल नही

Please read caption for
Full poem

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12 AUG 2019 AT 15:14

सुनो...,
मेरी निष्ठा मेरा त्याग
मेरे समर्पण का लिबास
तुम पहन लो ना....
और मैं ओढ़ लूँ
तुम्हारी बेबाकियों का गमछा...,
आओ फिर...,जिंदगी के आइने में
हम तुम, इकदूजे को निहारें...,
देखें तो सही, इक दूजे के परिधानों में
कैसा महसूस होता है तब...!!!




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27 DEC 2021 AT 23:09

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