कठिन डगर, मुश्किल सफर, मंजिलें पुकारतीं हमें।
राहों में दुश्वारियां, तन्हाईयां,जिम्मेदारियां आगे बढ़ाती हमें।
हारे कभी,टुटे कभी,घर वाले रुठे कभी,हमें चलते जाना है,
लक्ष्य ठान कामयाबी के बढ़े निडर, मुश्किलें सँवारती हमें।
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मेरा परिचय
मैं एक सीधी सादी सच्ची साधारण सी स्त्री हूं,
मैं समाज... read more
बेबशी,बेखुदी,बेरुखी में ग़म के ओट तले मुस्कुराना आ गया।
बयां करुं किससे,लपेटे ज़ख्म मख़मल में दर्द छुपाना आ गया।
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क्या कहूँ,कैसे कहूँ
कि,तुम्हारा मिलना
तपती रेत पर
जैसे फुहार सावन की,
जाने क्यूँ,लम्हा लम्हा
वक्त गुजरता,
सिर्फ तुम्हारे ही
इन्तज़ार में,
न जाने,कब,क्यूँ,
कैसे बन गए
तुम मेरे दिल
के "सुकून"
स्वरचित - राधा सिंह
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———<🚩॥ॐ॥🚩>———
सादर प्रणाम 🙏
नव संवत्सर, विक्रम संवत-2082 हिन्दू नव वर्ष की आपको हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएं…
…………यह नव वर्ष आपको तथा आपके स्वजन-परिजन-मित्रगणों के जीवन में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करे, आपके सभी संकल्प सिद्ध हों,
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम से यही प्रार्थना है।
🥀🚩सादर,🚩🥀
सक्षम प्रांत महिला प्रमुख-
*विदा ले रहे हिन्दू वर्ष के*
*अंतिम दिन मेरा*
*वंदन स्वीकार करें..*
*क्षमा चाहूंगी . .यदि*
*आपके सम्मान मे*
*मुझ से कोई भूल हुई हो l*
*कल से नववर्ष विक्रम संवत 2082 प्रारंभ होने जा रहा है। मैं आप सभी लोगों का धन्यवाद करना चाहती हूं जिन्होंने मुझे संवत् 2081 में मुस्कराने की वजह दी है, आप उन्हीं में से एक हैं l*
*विश्वास है कि आगामी विक्रम सम्वत 2082 में भी आप सबका आशीर्वाद, मार्गदर्शन , स्नेह , सहयोग, प्यार , पूर्व की भांति मिलता रहेगा*
*सनातन हिन्दू नववर्ष की आपको परिजनों सहित हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !*
🚩🙏🚩 जय श्री राम 🙏
सक्षम प्रांत महिला प्रमुख राधा सिंह-
क्यों पाले हो दुरियां, क्या है, मन मे, कुछ बैर!
सन्नाटा पसरा यहां,क्यूं नहीं लेते एक दूसरे का खैर!
शाम ढल रही ज़िन्दगी की, कुछ वक्त तो निकालो,
निर्मल,निश्चल मन से मिलें,पता नहीं कब हो जाएं ढेर!
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जीवन की कश्ती को किनारा मिल गया।
घुटती अंधेरों में खो रही थी वे वजह जो,
तुम क्या मिले जीने का इशारा मिल गया।-
आ, आकर आंखों में, कोषों दूर चली जाती हो।
ओ प्यारी निंदिया क्यूं नहीं आंखों में रुक जाती हो।
बैरी जमाना दर्द ना जाने,दिखता है,जो वो,होता नहीं,
भविष्य की फ़िक्र में, सारी रात तू तारे गिनवाती हो।
ओ प्यारी निंदिया क्यूं नहीं आंखों में रुक जाती हो।-