upasana thapa   (उपासना)
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Joined 9 June 2020


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4 FEB 2023 AT 21:33

कितने अक्षर रही समेटे
ख्वाहिश में जज्बातों में,
आज तो सारे कह ही डालू
तुमसे बातों बातों में।।

तुम भी तो नादान ही हो,
अब तक ये न जान सके।
कितना हम बैचेन रहें हैं,
इन उलझे हालातों में।।


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4 FEB 2023 AT 21:14

न कह ही पाए न कोई जाना,
मन के सौ तूफानों को।
मचले,मसले,बुने,अधूरे
अनदेखे अरमानों को।।

देखी भी तो देखी सबने बस
सिलवट ही तो माथे की।
आंखों में देख सका न कोई,
निरुत्तर पड़े सवालों को।।

गढ़ी गई हैं बातें भी तो
अपनी समझ मुताबिक ही।
समझ सका,न कोई पढ़ पाया
मन में छपी किताबों को।।

कहने को तो भीड़ लगी हैं
अपनों की हमदर्दों की।
दिल नादान जो पिए जा रहा,
दिए दर्द के प्यालों को।।

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29 JUN 2022 AT 13:51

एक डोर सी मैं,
जिसका न ओर पता,
न ही छोर
कई गांठे भी मन में,
और कहीं तो सिर्फ़
एक तंतु के सहारे ही
जुड़े हुए हैं तार,
कब टूटे क्या पता ...

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28 JUN 2022 AT 23:13

विश्वास और अंधविश्वास
(Read in Caption)

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19 JUN 2022 AT 23:40

कही कुछ बात जो मैंने,
सुनो तुम राज रख लेना।
तुम अपने परों में मेरी,
एक परवाज रख लेना।
दिल तुम न रखो बेशक,
ये हक तुमको था हां तुमको है।
बस अपने दिल में ये
ख़ामोश एक आवाज रख लेना,।।
तुम्ही जानो ये कसमें और रस्में
हमको इनसे क्या
हम तो इश्क़ के खादिम हैं
तुम ये रिवाज़ रख लेना।।

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17 JUN 2022 AT 7:50

ये ज़िंदगी हसीन तो है,
शायद बहुत हसीन।
एक हम ही हैं जिसे ज़िंदगी को
जीना नहीं आया..।

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16 JUN 2022 AT 18:26

आपकी बुराइयां किसी की परेशानी की वजह बने ज़रूरी नही,
कई बार आपकी अच्छाई से लोग ज्यादा परेशान होते हैं...

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16 JUN 2022 AT 10:31

सब ठीक ही तो है,
कोई कमी तो नहीं,..।
दिल बस रो सा रहा है,
आँख में नमी तो नहीं..

सौ उलझने हैं,मुश्किलें हैं,
और कुछ तकलीफ भी
"लेकिन"
सह तो रहें हैं किसी से कही तो नहीं...

हम हंस रहे लबों से बस आँखें उदास हैं,
अब किताब थोड़े ही है,किसी ने पढ़ी जो नहीं...।

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15 JUN 2022 AT 19:45

लिखती हूँ अक्सर कागज़ों पर
प्रीत और विरह,
खोल पाऊँ काश मैं,
मन की कोई गिरह,
ये वर्ण,ये शब्द,ये वाक्य भी कम हैं,
जिनसे करूँ बयां मैं मन- मस्तिष्क की जिरह....​

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14 JUN 2022 AT 19:49

साँस - साँस में माला जपती,
मैं पिय के गुणगान की।
तुम चाहे जो भी समझो जानो,
मैं जोगन पी के नाम की ।
रमा के धुनी प्रीत की बैठी,
धुंआ धुंआ अब जग सारा ।
बस तूने ही न पहचाना,
एक तेरे लिए गुमनाम सी।
सुध बुध खोई जीवन हारा,
प्रेम ही अब वैराग हुआ।
क्या रक्तिम क्या केसरिया,
रंग रंगी मैं तेरी लाग की..।।​

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