कोई शब्द सूझे तो श्रृंगार देना..!❤️❤️
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सब कुछ ही तो जल गया, विरह की इस आग में
बस बची हुई हो तुम, दिल में दिमाग में
क्या थे क्या हो गये, तुम्हारे अनुराग में
स्मृतियों की सुरभि है बची, प्रेम के इस बाग में
निर्मल अश्रु धारा है, प्रेम के प्रयाग में
कुम्भ स्नान कर जाना, आ कर तुम इस माघ में
मिलेंगे हम तुम फिर से, कहानी के अगले भाग में
उम्मीद की ज्योति जल रही, प्रेम के चिराग में-
पापों को धुलने को
जन्म मृत्यु के चक्र से छूटने को
जा रहे हैं संगम स्नान को...
तो क्या ये 40 करोड़ लोग
फ़िर पैदा न होंगे?
क्या प्रकृति ने रचा है ये खेल
जनसंख्या कम करने को?-
इन आंसुओं के स्नान से
हर बार मैं और साफ हुआ ।।
दिल भी मेरा भीगा इससे
हर बार ये और पाक हुआ ।।-
सोचती हूं निगाहों को गंगा स्नान करा दूं
इश़्क में इसने भी बहुत पाप किए हैं-
स्नानोपरांत वह गया देवालय
पवित्र भाव छलकाने को
मैंने तो बस इतना पूछा
क्या धोया तुमने मलखाने को
तलहटी तक भीतरखाने को
वो मुझपर क्रुद्ध हो गया
पवित्र भाव में भी गिद्ध हो गया-
लटपटाए केश भींगा तन-मन तरवतर है जलधि वेश
स्नानोपरांत अभी उष्ण समीर संग सुखा रही हूँ केश
जल में प्रवाहित कर आई कलुषित भाव सहित द्वेष
हृदय में जो कुछ शेष है अभी पुनीता भाव अवशेष-
यादों की बारिश,
मन की सूखी मिट्टी पर,
छोड़ देती हैं, सोंधी सी खुशबू,
और बिना नहाए ही,
भीग जाती हूँ मैं---
रश्मि-