किसी औरत को बच्चा ना होने पर
उस की कोख को सुनी कहना कहां तक उचित है,
भले ही उसके कोख से ना जन्मा हो बच्चा,
पर औरत की कोख सुनी कभी नहीं हो सकती
क्यूंकि एक औरत कि कोख हमेशा भरी होती है
"प्रेम,ममत्त्व और सहनशीलता से"...!!!
:--स्तुति
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अभी उसके नाम के मेहँदी की खुशी के रंग उतरे ही नहीं थे उसकी हाथों से, उससे पहले उसके महबूब के मरहूम होने की खबर कारगिल से आई...
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कही अनकही
सुनी अनसुनी
के बीच के क्षण
कल्पना और यथार्थ
के सीमा से परे
लेकर आता है
कई अनुत्तरित प्रश्नों
का जाल
जिसे हम बुनते है
खुद को फांसने के लिए....-
कौन सी बात कहां,
कैसे कही जाती है,
ये सलीका हो तो,
हर बात सुनी जाती है।-
तेरी आँखें ... कुछ सूनी , कुछ सुनी मैंने
आहटों में ढूँढते हो उसे , जिससे दूरी चुनी तूने ......
कौन चाहता है चाहतों में चले जाना छोड़ कर
कुछ रूँधे गले आँहें जो भरी तूने हाँ कुछ सुनी मैंने
हो दूर ही सही , सही रहो तुम यूँही,,, कि तेरी
कुछ कमी सी यहाँ , खली है मुझे .....
जो अज्ञातवास लिया प्रिय है , ज्ञात उसका पता
किया है मैंने ,,,, जान क्यूँ छोड़ दी है बता जब
साँस - साँस मेरी मुझसे चुरा ली है ,
मेरे मन से तेरे मन की व्यथा ये सुनी मैंने ............
एक दिया धरा ,, धरा पर जो था तेरा नाम लेकर
क्या किसी दिए को मेरा नाम भी दिया था तूने ..
ये अनसुने अनकहे शब्दों की कहानी जो गढ़ी थी तूने
हाँ बिन कहे ही ये कहानी तेरे लबों से सुनी मैंने...
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खुदा को "अर्ज़ी" डाली है तुम्हारी
देखते हैं कब तक सुनी जाती है हमारी....-
यहां सुनी सुनाई बातों का एतबार क्या करना।
जो गुजर गई उस शाम का इन्तज़ार क्या करना।।-
पता नही तू हक़ किसे समझता है!
इतनी भी नासमझी ठीक नहीं।
तुम तक ही जो जाए रास्ता,
वही तो मेरी मंजिल है।
माना कि मुझे इज़हार ए मोहब्बत
करना नहीं आता है,
पर तेरी उंगलियों को जीवन भर
थामकर चलने की आरजू मेरी भी है।
सिर्फ तुझे ही अपने सुनी आँखों
के एहसासों को पढ़ने देती हूँ,
हक़ नहीं तो और क्या है ये!!-
कहते है कि दिल की सुनी चाहए
पर अब मेरा दिल उन्हें छोडने का है तो
आज वो इस दिल को मांग रहे हैं......-