क्यों ये तकलीफें मुझे हर रोज़ खाई जा रही
हर रोज मुझे मेरे बुरे वक़्त से मिलाई जा रही,
मुझे जंजीरों में जकड़ खड़ा कर दिया किनारे पे
ऐसे मोड़ पर छोड़ दिया जहां सिर्फ जिस्मे जलाई जा रही,
मेरे पंखों को नोच मेरी उड़ानों पे बंदिशे लगाई जा रही
मेरा सब छीन मुझसे बंधे ताबूतों में दफनाई जा रही,
मेरी लब्जो कि हर करवटें भी दर्द से कराह रही
राहों में भी चुभन हो मुझे ऐसे कांटे बिछाई जा रही,
कभी इक सहारा बना था जो मेरा वो भी साथ छोड़ कर जा रहा
दोष किसे दू अपने ऐसे हालातों का मैं खुद भी नहीं सोच पा रहा,
यकीन था उसपे की मेरे मुकाम में वो मेरे साथ होगा
मेरे ज़ख्मों को कुरेद गया वो ऐसा मै तड़पता जा रहा,
ये खालीपन अब मेरे रूह को निचोड़ता जा रहा
मेरी बची हुई हर सांस को भी मुझसे छीनता जा रहा,
इस दोहरी ज़िंदगी ने मुझे यूं अधमरा सा कर दिया
कोई समेट ले मुझे इस कदर ये जिस्म पूरा बिखरता जा रहा।।
@Ritik Gupta
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