QUOTES ON #साड़ी

#साड़ी quotes

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12 JUL 2023 AT 9:05

कभी देखे होंगे हसीन मंज़र और जुल्म-ओ-सितम हुस्न का,
ऐसी कयामत तो नहीं देखी पर जब मैने तुम्हे साड़ी में देखा है।

रोकती हो तुम साँसे जब साड़ी की प्लेटों को खोंसती कमर में,
साड़ी की ऐसी किस्मत देख मैने खुद की साँसे रुकते देखा है।

खुदा खैर करे पर तेरी इस अदा पर मुझे मौत क्यों नही आई,
जब साड़ी पहनते वक़्त तेरे होठों में साड़ी पिन दबाये देखा है।

तान के सीना तुम जब करती हो साड़ी का पल्लू पीठ के पीछे,
माना नजरों ने हिमाकत की पर मैने तो सिर्फ साड़ी को देखा है।

कब जागेंगे नसीब मेरे की अपने हाथों से तुम्हे साड़ी पहनाऊं,
हाँजी ऐसा हसीन ख़्वाब अक्सर मैने खुली आँखों से देखा है।

जुल्म, सितम, कहर की इंतेहा होगी शहर में, दिल थामे रहना,
कत्ल-ए-आम का अंदेशा है आज उसे काली साड़ी में देखा है।

आज भी मालूम मुझे उस चाँदीवरम साड़ी की दुकान का पता,
है इंतजार में वो साड़ी, उस साड़ी के ख्यालों में तुम्हे देखा है।

अब भी याद है वो करवाचौथ की रात तेरा चाँद के इंतजार में,
तब मैंने जमीं के मेरे चाँद के सिर पर, साड़ी का पल्लू देखा है।

कांथा, चंदेरी, पटोला, पैठणी बनारसी, बोमकई और बंधेज,
हर साड़ी में जब 'राज' ने सोचा, तब तुम में पूरा भारत देखा है।
_राज सोनी

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24 APR 2019 AT 14:56

पहली दफ़ा
गज भर की साड़ी पहनी गई
स्कूल की विदाई पार्टी में
वो साड़ी थी आज़ादी की उड़ान
ख़ुद की इच्छा से बाँधी साड़ी
पाँव फँसे तो सबने कहा,
"ज़रा सम्भलकर"
फिर पहनी
गज भर की साड़ी शादी के बाद
इस दफ़ा साड़ी को मैंने नहीं
साड़ी ने मुझे बाँधा
आज़ादी की उड़ान
ज़मीं पर रोक दी गई
पाँव फँसे तो सबने कहा,
"इतना भी नहीं सम्भाल सकती"
फ़क़त एक कपड़ा ही तो था
बस मायने बदल गए वक़्त के साथ!

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9 JUN 2020 AT 1:25

गज़ब हो तुम,ये तुम्हारे नखरे कमाल,
पहनती हो जब तुम साड़ी,लगती हो बवाल।

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6 AUG 2018 AT 14:07

मुझे अब नहीं चाहिए होती मदद।
सम्हाल लेती हूँ, प्लेट्स बना कर
सारी को अपनी कमर में।
मुझे अब आता है
सारी के उड़ते पल्लू की ज़िम्मेदारी को
परत-दर-परत अपने कंधों पर व्यवस्थित करना।
अब कोई पिन मुझे नहीं चुभता,
ना कमर के ऊपर,
ना कमर के निचे।
मैं पहन लेती हूँ नज़ाकत
अपने कानों में
और ओढ़ लेती हूँ मुस्कान
होठों पर।
मैं नहीं पहनती कोई पाजेब,
जो बन जाए मेरे पैरों की बेड़ियां।
चूड़ियाँ सिर्फ एक हाथ में हीं खनकती हैं,
दूसरे से मुझे अंदाज़ा रहता है,
आते गुज़रते वक़्त का।
मेरे पैरों की हील से
अब मेरे पाँव लड़खड़ाते नहीं
जानते हैं वो,
मेरा कद बढ़ाना।

मैं सिख गयी हूँ अब
सम्हलना, समेटना, सवारना
अपनी साड़ी को
और खुद को।

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28 JAN 2018 AT 12:03

कहीं किसी के बोल में, तो कहीं किसी ने कलम उठाई है
मेरी माँ के साड़ी पहनने के अंदाज़ में ही गज़ल समाई है।

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11 JUN 2018 AT 21:17

साड़ी का पल्लू नाफ़ से हटाया न करो
चाँद, अब्र के पीछे ही तो कहर ढाता है।

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8 MAR 2020 AT 18:32

पत्नी ने मुझे दे दिया, बड़ा ही डिफिकल्ट टास्क
ले कर आओ तुम मेरी, साड़ी से मैचिंग मास्क

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1 FEB 2018 AT 21:59

अगर बॉर्डर नहीं होते,
तो साड़ियों की खरीददारी में, वक्त कम लगता।☺

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17 JUL 2017 AT 1:51

मैं रंगों से डरता हूँ
मैं डरता हूँ उस काली लड़की के काले नसीब से
कहीं काला न हो जाऊँ, इसीलिये गुजरता नहीं उसके करीब से,
मैं डरता हूँ उस विधवा की सफेद साड़ी से
फेंक दिया था जो उसके सिंदूर को
किसी ने चलती गाड़ी से
मैं डरता हूँ सड़को पर बहते लाल रक्त से
पूछता हूँ अनगिनत सवाल खुद से, समाज से, धर्म से और वक्त से
हर रंग मुझे डराता है
मुझे सफेद कर जाता है

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8 JUN 2020 AT 7:19

हमें पसंद नहीं ये mini skirts
वाली लड़कियां...

क्या तुम्हें साड़ी या चूड़ीदार के ऊपर,
छोटी बिन्दी लगानी आती है?

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