बस यही कहना था उनसे हाल मेरा ठीक है,
बस यही कहने में मेरे होंठ थर्राते रहे.....-
अक्सर रात को खिड़की से नीचे मैं झाँक लिया करता हूँ।
क्या पता कब किसी टैक्सी से तुम आ जाओ
संग सामान लिए -
दो सूट्केस और एक चायपत्ती से भरा झोला -
तुम ऊपर ताकते मेरी बाल्कनी की ओर,
ताकि मैं चाबी फ़ेकूँ
नीचे वाला बंद ग्रिल खोलने के लिए।
फिर लगता है इतने दिनों बाद आयी हो।
मेरा नीचे तक जाना तो वाजिब होगा।
कभी कभी रात को सोने से पहले
बिन चप्पल तीन फ़्लोर नीचे दौड़ जाता हूँ।
जब वहाँ कोई भी नहीं मिलता
तो मैं चुपके से ग्रिल का ताला खुला छोड़ आता हूँ।
क्या पता।-
यूँ हर्फ़ों से तेरे मैं गुजरता रहा हूँ
"साहिर" तुझे पढ़ सँवरता रहा हूँ
कि तू पल-दो-पल का शायर, ये है जग-जाहिर
फिर न फनकार तुझसा मिला जग को "साहिर"-
"You never were in my competition"
,she said smiling.
"You too"
-He said with head in foots.
It made them part their
ways cause Lines were
same but the feelings.....-
काश इज़हार ए मुहब्बत में यूँ माहिर हो जाऊं,
इमरोज़ की अमृता और अमृता का साहिर हो जाऊं..-
मोहतरम साहिर लुधियानवी की याद में
सच कहूँ तो तुम पे कुछ लिखने की मेरी नही कोई औकात
लफ्ज नही है मेरे पास कैसे लिखूँ तारीफ में दो चार बात
और तुम सब को ही मान बैठा है ये 'साहेब' अपना उस्ताद
अकेला चुप चाप कहीं विराने में पढ़ता है तुमको दिन रात-
साहिर ही तो था वो
जिन्दगी में तो आया,
पर ज़िन्दगी नही बन पाया।
Priti Mehra-
कभी चेहरे तो कभी वेश बदल
साहिर आकर्षित कर बाजार का
राहज़न बन कर लूट लिए सब
दर्द हस्ती-ए-कम-अयार का
-
इतनी सलासत से तुम्हारी आवाज़ ने
मेरे दिल पर दस्तक दी है,
जैसे बारिशों में भीगी शबनम को
तज़ामत समेटती है।।🍁-