क्यों आ जाती है संवाद हीनता
अचानक रिश्तों की दहलीज पर,
गायब सी हो जाती हैं बातें
कुकुरमुत्ते सरीखे उग आते हैं न
जैसे किसी ने चुप्पी का बीज बो दिया हो
पहले तो यूं उगते थे शब्द
कि बन जाती थीं कविताएं हर मुलाकात पर
ऐसे गुम हो गई तुम्हारी छन की आवाज
जैसे दरवाजों की बैठकें
चौपालों पर होती चर्चाएं
रातों की नींद
और नींद में बनते बिगड़ते सपने
लगता है कविता से एक दिन
भाव भी मर जाएगा
पर कैसे हार मान लूं मैं
मुझे देखना है फिर से
उन जंगलों में पलाश का खिलना.-
जो है अब पता चला हमें
आए मेरे तनहाई ।
आखिर महफिल लाख लोगों से
भढ़े हो फ़िर भी हम अकेले हैं
आए मेरे तनहाई ।।-
साथी
तुम साथ दोगे मेरा मेरे आख़री सफ़र तक
या बीच मझ़धार में छोड़ कर चले जाओगे !-
तुम कितने चंचल हो
तुम कितना मचले हो
साथ में तो लगते ही हैं दिन बँधन के
ओ साथी मन के
बता दो जरा यह बात
क्यों देते हो हमें तुम मात
याद तो होंगे तुमको भी दिन विरहन के
ओ साथी मन के
मान लो हमारी यह बात
रहा करो इस पल में साथ
तुम ही तो दीपक हो हमारे आँगन के
ओ साथी मन के
सात जन्मों का वादा तो नहीं
इस पल का इरादा ही सही
इस पल तो तुम ही अमृत हो जीवन के
ओ साथी मन के-
मुझमे है पर मुझसा नही
ऐ मन तेरी पहचान यही
मेरी जाने या ना जाने
पर 'मैं' तुझसे अनजान नही
-
साथी तो बहुत मिलेंगे मेरे को लेकिन क्या तेरे जैसा दूसरा कोई मिल पाएगा मुझे
तेरी तरह सच्चाई कि बेजती मार के हंसाने वाला क्या दूसरा मिल पाएगा मुझे,
दुश्मनी तो हर कोई निभाता है लेकिन तेरी तरह दुश्मनी भुलाने वाला यार दुबारा मिल पाएगा मुझे,
गम तो सबने दिया मुझे लेकिन तेरी तरह आशु पोछने वाला क्या फिर मिल पाएगा मुझे,
लाख रूठूं मैं मगर तेरे जैसा दूसरा मनाने वाला नहीं मिल पाएगा मुझे,
कहा मिलेगा दूसरा कोई गिरने के बाद उठाने वाला मुझे,
याद तो मुझे आज भी है बंक मार कर घुमाने वाला यार मुझे,
यार याद है वो जो बंक मार कर ले जाता था बाइक पे घुमाने मुझे,
वो जाशुसी लड़कियों की करनी वो तेरा सिक्रेट पीना और साथ में पिलाना मुझे,
थोड़ा थोड़ा नशेड़ी तूने बनाया मुझे,
कोरोना जैसी बीमारी न होती तो दोस्ती अपनी जन्नत होती हमारी ना छोड़ के जाता तू मुझे
कोरोना बीमारी में एक साथी छोड़ के चला गया मुझे,
मुझे पता है कि जरूर कोई मजबूरी होगी तेरी नहीं तो तू भी नही भूलता मुझे,
साथी तो बहुत मिलेंगे मेरे को लेकिन क्या तेरे जैसा दूसरा कोई मिल पाएगा मुझे ।।।
Denoted my special friend ( Rahul ) ...-
देख रहे हो चाँद को कैसे इतरा रहा है...
चिढा रहा है मुझे, शरारती है तुम सा ही।
रोज चला आता है मेरा दर्द बाटने...
पता है ........... मेरे छोटे से मन
की एक छोटी सी ख्वाहिश है।
मेरे अमावस से जीवन में एक दिन तुम चाँदनी वाली रातें लेकर आना..उस दिन हम दोनों मिलकर के चिढाएंगे चाँद को..
उसे भी तो पता चले के दर्द बाटा नही जा सकता उसे अकेले ही सहना पडता है...-