मुकम्मल कैसे होगा इश्क़,नीयतों में खोट रहती है
दिलों में अब मोहब्बत नहीं, साजिशें रहती हैं।
रूहानी इश्क़ रह जायेगा महज़ किस्से कहानियों में,
दिमाग अब मौके की तलाश में और आँखे जिस्म पर रहती है
कदर वफ़ा की कैसे होगी इस दौर में,
हर किसी की नजर बेवफाई की ताक में रहती है।
दिल का क्या काम अब इश्क़ मोहब्बत में
सारी स्क्रिप्ट अब दिमाग में लिखी रहती है
डर लगता है अब ज़ख्म दिखाने में अपने
बेरहम दुनिया ज़ख्म कुरेदने को तैयार रहती है
कांटे कब तक करेंगे हिफाज़त फूलों की,
"मुनीष" अब माली की नज़र में भी हवस रहती है
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