निगाहों ने जरा सी गुस्ताखी की है...
की ज़र्रे ज़र्रे ने तुझे देखने की साजिश की है...
तुझे देखू ना तो इस दिल को करार ना आये
तुम्हे देखनी की अब आदत सी हो गयी है...-
मुकम्मल कैसे होगा इश्क़,नीयतों में खोट रहती है
दिलों में अब मोहब्बत नहीं, साजिशें रहती हैं।
रूहानी इश्क़ रह जायेगा महज़ किस्से कहानियों में,
दिमाग अब मौके की तलाश में और आँखे जिस्म पर रहती है
कदर वफ़ा की कैसे होगी इस दौर में,
हर किसी की नजर बेवफाई की ताक में रहती है।
दिल का क्या काम अब इश्क़ मोहब्बत में
सारी स्क्रिप्ट अब दिमाग में लिखी रहती है
डर लगता है अब ज़ख्म दिखाने में अपने
बेरहम दुनिया ज़ख्म कुरेदने को तैयार रहती है
कांटे कब तक करेंगे हिफाज़त फूलों की,
"मुनीष" अब माली की नज़र में भी हवस रहती है-
पत्थर फेंक देना मुझ पर लेकिन मेरे
जख्म-ए-दिल पर लगाने मरहम दे जाना ।
दफ़न कर देना मुझे अपने साजिशों से,
बस मेरे कब्र पर मुझे एक कलम दे जाना ।-
अलविदा के बहाने वो गले मिल कर लौट जाये,
इस सर्दी मैं फिर उसी साजिश के इंतजार में हूँ।-
गुलों की जान जाती रही ,हर महक ने दम तोडा है
बेरूखी ऐसी भी क्या,वो रीझते भी ना दिखे हमकों-
नींद से ख़्वाब में न पाने की साजिश कर रहा हूँ मैं
तुझे अब मुक़म्मल भुलाने की कोशिश कर रहा हूँ मैं-
साज़िश थी उसकी और मैं रास्ते में मारा गया
गांव में खबर फैला दी की मैं हादसे में मारा गया-