सहन करने की एक सीमा होती है
औऱ वो सीमा केवल "माँ" होती है-
ग़म इतना कि अब ग़मज़दा हुआ नहीं जाता
दर्द इतना कि अब सहन किया नहीं जाता
हो आराम तो अब कैसे हो इस रूह को
ज़िन्दा हूँ मगर अब ज़िन्दा रहा नहीं जाता
- साकेत गर्ग 'सागा'-
ना पूछ मेरे जब्त की हदें मुझसे
उसे गैरों के साथ देख कर मुस्कुराई हूं-
जो आपका गुस्सा सहन
करके भी आपका साथ दे
उससे ज्यादा प्यार आपको
कोई नहीं दे सकता-
सब कहते हैं माँ !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ ,तुम्हारी छाप है मुझमें ...
वे गलत हैं , मैं तुम जैसी
बिल्कुल नहीं हो सकती
मेरा सिर्फ मुखड़ा मिलता है तुमसे
तुम्हारे गुण नहीं हैं मुझमें ..
सब कहते हैं माँ !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ , तुम्हारी छाप है मुझमें ....
मैं सिर्फ तुम्हारा अंश हूँ
तुम जैसी कभी नहीं बन सकती
तुमने जितने संतोष किए हैं
उतना धैर्य नहीं है मुझमें ..
सब कहते हैं माँ !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ , तुम्हारी छाप है मुझमें ....
तुमने कितना कुछ सहा है
कभी जुबान ना खोली
और मैं आजादी प्रिय
किसी को सहन नहीं कर सकती
तुमने सब के अत्याचारों को
आदर सम्मान दिया
मैं ऐसे रिश्तो की जिम्मेदारियां
वहन नहीं कर सकती
जितना साहस, जितना धैर्य
जितनी शीतलता है तुममें
माँ ! ऐसा तो कुछ नहीं मुझमें ..
सब कहते हैं मां !
मैं तुम जैसी दिखती हूँ , तुम्हारी छाप है मुझमें ....-
हुसूल-ए-मक़्सद मेरा ज़ब्त नही उनको
जो कहते थे बेइंतेहा 'सुजाता' मोहब्बत है तुमसे-
तू रहीम है तू करीम है....
मुझे मुश्किलो से निकाल दे....
मुझे बस इतना कमाल दे...
कोई ज़ब्त दे न जलाल दे...
मुझे बस अपनी राह पर डाल दे.
मेरे जेहन मे तेरी फ़िक्र हो.....
मेरी सांस मे तेरा ज़िक्र हो....-
औरत
सब कुछ सह लेती है,
अगर कुछ सह नहीं पाती है
वो है तिरस्कार।
पर ताज्जुब की बात है
युगों-युगों से...
औरत तिरस्कार भी सहती आई है।।-