अक्सर मेरे सामने हर वो सवाल आ जाता है
जिसका जबाब मेरी मुस्कुराहट के कफ़न
पर लिखा जाता है
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सवाल करती है मुझसे अब वो आँखें भी,
जो मेरे सवालों का जवाब हुआ करती थी।।-
सवालों की गुंजाइश उस रिश्ते में होती है
जिस रिश्ते मैं विश्वास की कमी होती है-
जवाब देने हैं, सवाल बाकी है
दिल में अब भी मलाल बाकी है,
नया रंग उमड़ आया बादलों पर
पूछना उनसे उनका हाल बाकी है,
इक कागज की कश्ती बहाई थी
देखना हवाओं की चाल बाकी है,
शोर तेज है आज धड़कनों का
वो करीब हैं, ये खयाल बाकी है,
पिघल रहा वक्त 'दीप' हर लम्हा
ख़ामोशियों का ये साल बाकी है !-
हम ज़िन्दगी के हर इम्तिहां के लिए
सारी तैयारी धरी रह गई ज़िन्दगी ने सवाल कुछ ऐसे किये-
प्रेम का अर्थ
मैं क्या सोचता था
पऱ अफ़सोस के तुमनें क्या सोचा..!
Please read in caption...!-
सुनों ना...
ग़र मुहब्बत है तो.. ले हाथों में हाथ निकलना पड़ेगा
इस मौज-ए-सागर से साथ में निकलना पड़ेगा,
यूँ दबा के गम सीने में क्या मिलेगा
इस राह-ए-गुज़र में तो आंसुओं को हर हालात में निकलना पड़ेगा,
यार.. दिन में कहाँ मिलते हैं मुफ़्त में ख़्वाब झूठे
जुगनू देखने हैं.. तो फिऱ रात में निकलना पड़ेगा,
बहुत काँटों से भरी है यह शाख-ए-ग़ुलाब
दिल.. अब जख़्म कई लेके हाथ में निकलना पड़ेगा,
ख़्वाब कितनी दूर तक जाएंगे शबनम की बूंदों पे तर के
शायद अब पागलों सा..
..बादलों सा बरसात में निकलना पड़ेगा,
जज़्बात दिखाते हैं आँसुओं को बाहर का रस्ता
उफ़्फ़.. शायद मुझे भी अब जलके धूएँ सा..
..राख में निकलना पड़ेगा,
सुनों ना..!-
तेरे सिवा औऱ भी बहुत कुछ
गुज़रते वक़्त की पर्द में था,
औऱ भी कई ठिकाने थे ख़ुशी के
मैं कम्बख़्त यूँ ही बेवज़ह दर्द में था,
अभी-अभी ठीक हुआ हूँ
मैं मुहब्बत के लंबे.. मर्ज में था,
शुक्रिया ज़िन्दगी..
जो तूने आईना दिखाया
उफ़्फ़.. मैं अबतलक.. कितने गर्द में था!!-
उसे सोचता हूँ.. तो सोचूँ
क्यूँ उसे मेरी.. याद नहीं आती
हमनें मरने की भी ठानी.. तो लगा
कोई जिंदगी.. साथ नहीं जाती
"जाँ" से बढ़कर भी कुछ है
मुझे समझ यह.. बात नहीं आती
क्या है ज़िन्दगी.. क्या मुहब्बत
बस शज़र से.. पंछी की आस नहीं जाती
फिऱ से अंकुर आयेंगे
नज़र से.. शाख़ नहीं जाती
हवा है.. बस इक़ सरसराहट है
चाह कर भी.. हाथ नहीं आती
आँखों के समुख अंधेरा सा है
जाने क्यूँ.. दिन में भी यह रात नहीं जाती!-