QUOTES ON #समता

#समता quotes

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11 APR 2019 AT 9:27

समता का नाम सुख है।
क्योंकि ये किसी भी परिस्थिति में
व्यग्र या क्षुब्ध नहीं होने देती है।

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21 MAY 2017 AT 19:14

आज उन आँखों को देखा
टिमटिमाहट थी उन में भी,
जैसे अंधेरी रातों को
तारे चमकते है सभी।

आज उन अश्कों को देखा
सूख चुके थे जो कभी,
ठीक उस नदी के जैसे
जिसे बारिश ने सराबोर किया हो अभी।

अफसोस हुआ इस बात का
ना आसमान मिला उन्हें ना ज़मीन,
चमकते तो कहाँ, ना बह पाए कभी
समता पर से अब उठ चला यकीन।

बराबरी की एक लड़ाई में
कद्र ना हुई गरीबों की,
नर और स्त्री तो समान हुए
बस मानवता पीछे छूट गई।

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25 FEB 2021 AT 23:32

मी असे बीज व्हावे
खोल चिखला मध्ये रुजावे,
येताच बहर माझ्यात
पाखरांनी तृप्त व्हावे...!

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20 APR 2021 AT 5:12

#21-04-2022 #काव्य कुसुम #जीवन का उत्कर्ष #
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जीवन का उत्कर्ष संघर्ष में नहीं सहयोग में है ।

जीवन का उत्कर्ष संपन्नता में नहीं समता में है ।

जीवन के उत्कर्ष के स्वरूप को जान लीजिए -

जीवन का उत्कर्ष राग-द्वेष में नहीं ममता में है ।
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3 APR 2020 AT 5:37

# काव्य कुसुम # मन -मंदिर #03-04-2020 #
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मन - मंदिर में समता का भाव जीवन का सार है ,

मन - मंदिर में माधुर्य का होना जीवन का अनुराग है ,

गीत प्रेम के हो ध्वनित आलोकित होगा मन - मंदिर -

मन - मंदिर का आलोकित होना जीवन का अनुराग है ।
**** प्रमोद के प्रभाकर भारतीय - नागौर ( राज )****

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11 DEC 2020 AT 7:47

# 12-12-2020 # काव्य कुसुम # समत्व #
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जीवन में समता के सागर बन कर रहना सीखो ।

जीवन में अपने कुछ तकलीफों को सहना सीखो ।

इच्छाएं सीमित कर समत्व भाव जगाओ जीवन में-

जीवन में तृष्णाओं को त्याग सच कहना सीखो ।

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6 APR 2020 AT 16:55

समता स्युं श्रवण, ब्रह्मचर्य स्युं ब्राह्मण,
ज्ञान स्युं मुनि अरू तप स्युं व्यक्ति तपस्वी बणै है,
यो बात कहतां हुया तीर्थंकर महावीर जी नै समग्र-
मानव जाति नै एकत्व को शंखनाद कियो-
उणा समझाया दूसरां नै बी आत्मतुल्य समझणो,
महावीर जयंती असल मैं आत्म संयम को संकल्प-
जगावै है,अजर अमर आत्म तत्व पार्थिव तन वरण,
जीओ अरू जीणै द्यो, सात्विक घोष नाद, वसुधा नै-
शुभ वर्गणा स्युं अनुदेशित कर, सुधा रस वाणी स्युं-
जग जग को कल्याण कर,मोह तज, होम जप स्युं-
कर्मा पर बहुमार करो, वीरता स्युं निर्वाण लियो..।



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(घनाक्षरी)

समता की भावना से सजी इस दुनिया में
जहाँ देखो वहाँ बस कपट की काली है ।

क्रोध, क्लेश और मृषा रूपी मैला उपवन
जहाँ छल द्वेष स्यात् बने बैठा माली है ।

खो रही संवेदना से पल्लवित पादपों की,
होती हतप्रभ कली, सूख रही डाली है ।

जिन गुणों हेतु मनु पशु से पृथक रहा
आज उन्हें हार पशु-वृत्ति अपना ली है ।

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16 MAY 2017 AT 0:13

चाहत!
बिन अदा सब बेकार
जिंदगी मांगती है सदा तुमसे
तेरे ज़ज्बे भरे बोल और उत्तम विचार
पाखंड नहीं होते वो बोल
जो घुट घुट कर जीता हर पल
अपने दिल के कोने को खोल
घुटन नहीं है महल बनाने का
उसमें रह रहे लोगों को
आभूषण का ताज चढ़ाने का
सांसारिक सुख क्या खूब जिया
अब जलाना है फिर से एक बार
अपनी संसारिक वीरक्ति में ज्ञानों वाली दीया
मेरे घर में न रहते कोई निर्जीव
जिन्हें सजीवों के दुख दर्द का इल्म नहीं
तभी खुद को सजाने से पहले
वो सजा जाते अपने बच्चे जो हैं तीन
साथ जब हैं तुम नेक इंसान
क्या लगाऊँ किसी और का ध्यान
छोड़ दूँगा हर पद प्रतिष्ठा
और जा मिलूँगा उनसे
जो होंगे आतुर कहीं
जलाने को मेरे हाथों से हीं
प्रेम लौ का वेशकीमती दीया
पता है तुम नाराज होगी
खोकर अनगिनत शोहरत प्रतिष्ठा
पर क्या है अब मैं जवान नहीं होऊँगा
अभी ही जगाना होगा मुझे
आस पास मानवता का बुझता दीया!

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18 MAY 2017 AT 20:01

एक ममता की छाँव,
दूजी समता की छाँव,

बस इन दोनों मेें ही पूरी दुनिया महफ़ूज़ रहती है.......

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