तुम मर्द बहुत इतराते हो कि ये दुनियां तुम चलते हो,
जा कर बैठना कभी मां के अंजुमन में
सारी दुनियां तुम आंचल में पाओगे।
और बहुत घमंड रखते हो जो अपनी बाजूओ के बल पर,
जब नई सृजन की बात आएगी
उस दर्द के आगे खुद को कमजोर पाओगे।।-
यकीन तो सबको झूठ पर ही
होता है सच तो अक्सर साबित
करना पड़ता है ..... "-
सोचकर आपके बारे में मेरा मन प्रसन्न हो जाता है
आपके मुंह पर खुशी देखकर मेरादिन भी सुखमय हो जाता है
सच है प्यार करने लगे हैं आपसे आप करें या ना करें
हम करेंगे यह बात पक्का है प्यार तो मन की पवित्रता है
इसमें रूप का नहीं कोई नाता है
इसीलिए तो इस दुनिया में
सबको प्रेम करना नहीं आता है
कलयुग के अधिकतर प्रेम का
तो, शरीर तक का ही नाता है
इतना सरल नहीं है प्रेम करना
इसीलिए तो सबको
प्रेम करना नहीं आता है।
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किसको क्या मिला इसका कोई हिसाब नही,
तेरे पास रोग नही, मेरे पास लिबास नही।-
सुनो न तुम्हारा साथ,
मुझें इंद्रधनुष के रंगों सा लगने लगा है।
दिखता तो सबको है,
पर छू नही पाती मैं तुम्हें।-
कब समझोगे दुनियादारी?
नाहक सारी उम्र गुजारी..!
मुश्किल है सबको खुश रखना,
बढ़ती जाती है दुश्वारी..!
गैर किसी को कैसे मानूँ?
खुद से जंग हमेशा जारी.!
सबको अपना माना तुमने,
तुमसे भूल हुई है भारी..!
स्वतंत्र यहां बहलाते सब हैं,
करके बातें प्यारी प्यारी..!
ख़्वाब नहीं है ये जीवन है,
कांटों की चुभती फुलवारी !
सिद्धार्थ मिश्र-
वो शब्द क्या होगा?
जो सबको नि:शब्द कर दे।
वो बात क्या होगी?
जो बोलती बंद कर दे।-
फ़कत उसी को क्यों अपने आसुओं का दोषी मानती हो
गलतियां जो तुमसे हुई इश्क़ में क्या उन्हें पहचानती हो?
कहती हो कि मुस्कुराहट छीन ली उसने तुम्हारे होठों से
नींद,सुकून जो उसका गया क्या उस दर्द को जानती हो?
तुमने सोच रखा है तुम्हें छोड़कर चैन से सोता होगा वो
जो नींद से पहले होती है क्या उस तड़प को जानती हो?
अगर अभी नही हुआ है तुम्हें अपने गुनाहों का एहसास
तो मुझको लगता है शायद तुम मोहब्बत नही जानती हो?-
फिर इस देह पर इतना क्यो इतराना है
एक दिन सभी को मिट्टी ही बन जाना है-