जब इंसान बेकार की इच्छाओ के त्याग कर देता है और मै और मेरा की लालसा से मुक्त हो जाता है तब ही उसे शांति मिल सकती है ।
अच्छे कर्म करने के बावजूद भी लोग केवल आपकी बुराइयाँ ही याद रखेंगे. इसलिए लोग क्या कहते है इस पर ध्यान मत दो. अपने कार्य करते रहो ।-
जब महाबलिदानी बलि के सर,चढ़ा अहंकार अभिमान..
तीन लोक अधिकार जमाया,नीतिविरुद्ध चला अभियान..
मानव और देवता भी जब भय से त्राहि त्राहि करने लगे..
तब ऋषि कश्यप की कुटिया में,अवतारे वामन भगवान..-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
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"मम माया दुरत्यया"
मेरी माया अति.प्रबल है
श्रीमद्भगवद्गीता
व्यक्ति माया का त्याग मृत्यु पर्यन्त नहीं कर पाता
और क्लेशों सेयुक्त होकर संसारिक मोह माया में
संलग्न रहता है।
कर्म आवश्यक है किन्तु सुकर्म।
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अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि॥
किन्तु यदि तू इस आत्मा को सदा जन्मने वाला तथा सदा मरने वाला मानता हो, तो भी हे महाबाहो! तू इस प्रकार शोक करने योग्य नहीं है
॥26॥
ये श्लोक श्री भागवत गीता से लिया गया है-
कोई फ़ायदा नहीं हैं दर दर की ठोकरें खाने से,
आपका भाग्य बनेगा आप के बनाने से।-
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं,
न आग उसे जला सकती है।
न पानी उसे भिगो सकता है,
न हवा उसे सुखा सकती है।
[अनुशीर्षक में पढ़ें]-
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥
जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान समझकर, उसके बाद युद्ध के लिए तैयार हो जा, इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा
॥38॥
~ श्लोक 38 - अध्याय 2 - गीता का सार
ये श्लोक श्री भागवत गीता से लिया गया है-