तुम साथ ना हुए तो कैसे जी पाऊंगा
ना कुछ खा पाऊंगा ना कुछ पी पाऊंगा-
अकेला मैं यहाँ होकर समय को काट लेता हूँ
कभी हँसकर, कभी रोकर समय को काट लेता हूँ
मेरे सीने की मिट्टी सींचकर के आँसुओं से मैं
दुःखों के बीज को बोकर समय को काट लेता हूँ-
कहीं पर भी मुझे आराम नहीं है
शाम है पर पहले सी शाम नहीं है
यूँ तो मेरे कमरे में सबकुछ है "मागध"
बस खुशियों का ही इंतज़ाम नहीं है
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चारों ओर है घना अंधेरा
ना कोई ख़ुशहाली है
भीतर में एक शोर है "मागध"
बाहर सबकुछ खाली है-
अब मुझे दिन, दिन नहीं, न रात, रात लगती है
मातम सी रहती है सुबह, शाम उदास लगती है-
अपने अकेलेपन को कुछ यूँ मिटा रहा हूँ
कि इन आँसुओं के साथ रातें बिता रहा हूँ-
मुझे खुद का अता-पता नहीं रहता
मैंने पिछले कुछ हफ्तों में
खुद से ज्यादा आपको याद किया है-
इतना अज़ाब मिला मुझे
तुमसे बिछड़ने के बाद
जैसे मैंने इश्क़ नहीं
कोई गुनाह किया हो-
तुम्हारी हर यादों को दिल से मिटाने में
मेरी पूरी ज़िन्दगी लगेगी तुम्हें भुलाने में-