निराशा को स्थान भी आखिर, वही 'आशा' देती है
जो 'भँवर' में डूबकर 'लहरों' से शिकायत करती है-
यूं ही बेज़ा शिकवा शिकायतों में
क्यों ज़िन्दगी जाया करूं,
के मौत को मैंने बड़े करीब से देखा है।
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एक एक हर्फ के मानी बदल डाले हैं
हमने अपने खयालात बदल डाले हैं
इधर तू कपडे बदल कर खुश है बहोत
उधर आशिकों ने महबूब बदल डाले हैं
अमिरे शहर क्या मिला मेरी खुशी छीन
तेरी होड़ में लोगो ने घर बदल डाले हैं
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अब शिकवा करू भी तो किससे करू मैं
शिकायतों के बरसात कर दी है उसने,
मामला कुछ गड़बड़ सा लग रहा है
कहीं छोड़ के जा तो नहीं रही वो मुझको!..-
न करुँगी शिकवा,न शिकायत,न गिला करूंगी
मुझे गर लेना है बदला, मैं अपने लब सी लूंगी ।
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टूट चुके है हौसले परवाज़ करने के मेरे,
दिल को फिर रूह पोश हो जाने की ज़िद है,
ढूंढ़ती रहती हूं ज़मीन में आसमान हमेशा,
क्या बताऊं तुम्हे दीवानेपन की क्या हद है,
इतने सबक पढ़ा गया ज़माना मेरी ज़िन्दगी में,
बरअक्स, अंधेरों में भी साए का बड़ा कद है,
मलाल, शिकवा,गुरबत जैसे विरासत हो मेरी,
चुन चुन के दिए गए जाओ तोहफे ये बेहद है,
बाज़ औकात इसके "नूर" याद रखना हमेशा,
वफा करने वाला यहां होता मगर मुर्शीद है!
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तेरे बिन ज़िंदगी जिये जा रहे हैं हम
जैसे कोई गुनाह किये जा रहे है हम
साँसे भी चल रही हैं
दिल भी धड़कता है
पता नहीं फिर भी कुछ तो कमी है
जो शायद कोई पूरी ना कर सके...-
दोस्तों...
गजब की नुमाइशें होती हैं, प्यार में...
पर उनकी फरमाइशों को जो पूरा करें...
सच्चा आशिक, कहां होते हैं ...
इस जहां में...-
मैंने ऐ ज़िंदगी तुझ पर
कभी धोखा मत देना,
थाम तो लिए तुमने अपने हाथो में मेरा हाथ
अब कभी बीच रास्ते में छोड़ के मत जाना,
कोई भी शिकवा हो हमसे तो बेशक उसे कह देना
मगर कभी उसे दिल मे मत रखना..!!
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