शर्माना सीख लिया मैंने
माँ कहती थी-शर्म तो लड़की का गहना है
तू कब तक ये लड़को सा हुलिया लेकर घूमेगी?
सहेलिया कहती थी- बिन शरमाये, बिन पलकें झुकाये
तू अपने सैयां को किन इशारों से रिझाएगी?
मैं हमेशा कहती- अजी माफ करो सब।
न शर्माना है। न रिझाना है और न पास बुलाना है।
मैं ऐसी ही भली। मैं मनमौजी ही सही।
जब तुमने कहा- "तुम अच्छी लगती हो मुझे।"
मैंने इस बात को हँसी संग उड़ा दिया।
पर तुम्हारी इन्हीं बातों के दोहराह ने
एक नये एहसास में, मुझे भीगा दिया।
धीरे - धीरे तुम्हारी तारीफ़े मुझे बदलने लगी।
लगा जैसे-मैं रोज़ मैं से कोई और होने लगी।
साड़ी-चुनरी, काज़ल-बिंदी, सब से संवारना चाहती थी मैं।
न जाने कब से ख़ुद पर इतना गौर करने लगी।
हाथों में डाल कर चूड़ियाँ, कानों में बाली डाल ली।
लपेट कर साड़ी, माथे पर बिंदी सजा ली।
अपने बालों को संवार कर, आज पूरी काया बदल ली।
और सोच कर तुम्हें,अपनी पलकें झुका ली।
अब समझ आया मुझे, ये शर्म क्यों आती है।
अब समझ आया मुझे, पलकें कैसे झुक जाती है।
आख़िर.....
धीरे-धीरे तुम्हारी होने के एहसास में,
शर्माना सीख लिया मैंने। (गीतिका चलाल)-
उसे देखकर चेहरे पर
एक अलग सी मुस्कान आ जाती हैं
और नज़रें शर्म के मारे
झुक सी जाती हैं।
... हय ये शर्माना मेरा
🙈❤️🙈-
कौन शरमा रहा है आज,
हमें यूँ फ़ुर्सत में याद करके!!
हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं,
पर 'हिच-किचा' रही हैं!!-
ये आँखें जो कभी बातें करती थी इश्क़ मोहब्बत की,
अब नज़रें चुराती है इन्हीं बातों से,
ये होंठ जो कभी तेरा नाम लेकर शर्मा जाते थे,
आज मुस्कुराकर तुझे ही भूलना सीख रहें हैं-
मुझसे भी क्या हया, कैसा मुझसे तेरा शर्माना,
तू हसीन संग -ए -मरमर सी, मैं आईने का नज़राना!
करीब रहता हूँ तेरे दिल के, कभी चुपके से तुझे छू जाऊँगा,
मेरी खुश्बू में खो जाना ऐसे कई ना याद रहे फिर घबराना!!
हुस्न जैसे तराशा हो उम्दा किसी जौहरी ने बारीकी से तेरा,
कभी ख़ुद पीना लबों से कभी अपने लबों से मुझे पिलाना!!
मेरा नाम लेते ही आ जाती है जिसके चेहरे पे मुस्कान °कुमार°,
ख़ुदा ! उसके दिल में बस मेरी ही मोहब्बत का घर बसाना!!
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कल रात स्वपन्न में हम उनसे जा मिले ,
देखा कि ,
तिल -तिल वो मेरे करीब आ रहें ,
मेरे चेहरे पर कहीं ,
एक तिल ज़रा सा हल्का गहरा है ,
वो उस तिल पर ,
अपनी ऊँगलियाँ फिरा रहें ,
कभी थाम कर अपनी ऊँगलियों को ,
उस पर पहरा लगा रहे ,
तो कभी उसे अपनी निगाहों से ,
निहारे जा रहें है ,
हम लज्जा से कुछ कह ना पा रहें ,
बस अपनी पलको को ,
झुकायें जा रहें ।
💞💞💞💞💞💞💞
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बताओ जरा,
तुम मुस्कुरा के जो पलके झुका लेते हो
इसे शर्माना कहूं या नज़रे चुराना,-
म्हारी आंखड़ल्यां मा प्रीत थानै देखली
कित जाऊँ इब तो शरमाऊँ मै एकली।
इन आंखड़ल्याँ मा काजड़ कोन्या घाल्यूँ सा
म्हारा पीव साँवरा हो ज्यागा मै जाणूँ सा
इन आंखड़ल्याँ मा थारी सूरत देख ली
मै तो काँच के आगे इतराऊँ इब एकली।-