Geetika Chalal   (insta- @geetikachalal04)
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Joined 29 July 2018


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Joined 29 July 2018
15 FEB AT 17:44

आज पूछा किसी ने – "आपकी शादी हो गई?
वो जो आपके साथ थे, वो ही आपके पति थे न?"

शिरकत इश्क़ में पूरी चाहिए

मैं तरसती रही एक अरसे से, जिस पहचान के लिए
आज वो 'नाम' मिला भी तो, बेहद बेगाना होकर
न क़ुबूल कर पाई, न परहेज़ कर पायी
लुत्फ़ उठा लिया बेनाम इश्क़ ने, महज़ अफ़साना होकर

न तूने चाहा मुझे मेरे जैसा,ना तेरे नाम से मेरा नाम रहा
अंजाम-ए-वफ़ा में, ना इश्क का वजूद रहा न सब्र का मुक़ाम रहा

बेशुमार मोहब्बत ग़ैर-वाजिब हो गई,निगाह में तेरी
बीते कईं साल में, तेरी मोहब्बत मेरी होना भूल गई
तय कर लिया, दस दिनों में तूने नतीजा इश्क़ का
मैं तुझसे बे–हिसाब इंतज़ार का हिसाब लेना भूल गई

बता–इस मौके का तू कितना तलबगार था?
मेरा इंतज़ार कम था? या मेरा इश्क़ तेरा कर्ज़दार था?

सौदा ही करना होता अगर,तो इंतज़ार चुनती नहीं
मैं वक्त अपना हार गई, इस इश्क़ के व्यापार में
दुनिया गिनाती रही मुझे लाख कमियां तेरी
मैं सिर्फ़ तुझे ही बेहतर मान बैठी, इस इश्क़ के कारोबार में

तुझे मेरा होना ना आया, मैं तुझ पर सुकूं गिरवी कर बैठी
मुझे मेरा होना भी ना आया,मैं ख़ुद पर ही ज़ुल्म कर बैठी

ख़लिश किस हद तक रखूं? हाँ! मैं तेरी हसरत नहीं
तुर्बत को घर मान भी लूं, फिर भी साँसे जाती नहीं
कोई तेरे नाम से मुझे आवाज़ दे,ये अधूरापन ताउम्र रहेगा
शिरकत इश्क़ में पूरी चाहिए, रियायत इसमें हो पाती नहीं (गीतिका चलाल)

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6 MAR 2023 AT 0:11

ये रात बड़ी शातिर है, दर्द साथ ले आती है
नींद कैद कर के मेरी, मुझे तन्हा छोड़ जाती है।
क्या चाह है इस दिल को, ये कैसा सितम!
तन्हाई न जीने देती है न पूरा मार पाती है।
(गीतिका चलाल)

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1 FEB 2022 AT 11:17

मेरे लाल का ठिकाना

हमेशा बस यही सोचा - मेरा आँचल ही उसका घर है।
हमेशा बस यही सोचा - ये आँगन ही उसका शहर है।
वो बस्ता - वो किताबें, रोशनी ले तो आई उसकी ज़िंदगी में।
पर अब मैं ढूँढ़ रही, मेरी आँखों का दीपक किधर है?
ए नौकरी! कैसा लगता है एक माँ को सताना?
क्यों बहुत दूर है मेरे लाल का ठिकाना?

वो इस तरफ़ मुड़ना भूल गया, जब से कमाना सीख लिया।
ज़माने संग दौड़ना याद रहा, मेरी ओर क़दम बड़ाना भूल गया।
नाम - रुतबा सब मिला उसे, थोड़ा मग़रूर भी वो हो गया।
नौकरी!! तेरी शर्त के कारण मेरा लाल दूर हो गया।
ये आरामदायक ज़िंदगी, मुझे रास कैसे आए उसके बिना।
ए नौकरी !! मेरे पास बसा, मेरे लाल का ठिकाना।

वो बोलता है मेरे खाने का स्वाद उसे मिलता नहीं।
वो बोलता है कोई उसके सिर पर हाथ फेरता नहीं।
घर की याद आती है उसे, पर वो ख़ुद आ सकता नहीं।
तनख़्वाह तो मिल रही पर माँ की ममता मिलती नहीं।
गुज़ारे के ख़ातिर, सब से दूरी मेरे लाल की मजबूरी है।
ए नौकरी!!अब तेरी ग़ुलामी, एक माँ से भी ज्यादा ज़रूरी है।
मेरे पास रह कर, मेरा लाल दे ना पायेगा तेरा हर्जाना।
ए नौकरी!! अर्ज़ मेरी!! मेरे पास ले आ मेरे लाल का ठिकाना। (गीतिका चलाल)

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20 DEC 2021 AT 21:43

वक्त कहाँ तुम्हें?

मैं नाम की मोहब्बत। कहीं रोग तो नहीं?
वक्त कहाँ तुम्हें? कहीं बोझ तो नहीं?

तुम्हारी सुबह की शुरुआत कभी मुझसे हुई नहीं।
तुम्हारे दिन का हर वक्त दफ़्तर ने छीन लिया।
घड़ी ने जब आज़ाद किया तुम्हें शाम के छोर पर
तुमने वो वक्त भी दोस्तों में बाँट दिया।

ना सुबह तुम्हारा साथ था, न दिन से कोई उम्मीद थी।
तुम्हारी शाम एक क़ैदी थी, अब बाक़ी बस रात थी।

चाहत इतनी थी कि रात तरस करे मुझ पर
और तुम्हारे वक्त का एक क़तरा मेरे नाम कर दे।
वो क़तरा मेरा बस इतना सा काम कर दे
सिर्फ़ मैं याद रहूँ तुम्हें, बाक़ी सब को अनजान कर दे।

मेहरबान तुम हुए नहीं, तुम भूल गए मुझे
मिलकर रात और नींद ने, कर ली फिर साज़िशें

तुम बेफ़िक्र होकर सोते रहे, टूटी सी मैं सोचती रही
मेरी अहमियत तुम्हारी ज़िंदगी में, आख़िरी से भी आख़िरी नहीं।
ना जाने कब रात बीती- कब सुबह हो गई!
पर तुम्हारी ये सुबह भी मुझसे शुरू हुई नहीं।

मैं नाम की मोहब्बत। कहीं रोग तो नहीं?
वक्त कहाँ तुम्हें? कहीं बोझ तो नहीं?(गीतिका चलाल)
@geetikachalal04

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15 NOV 2021 AT 11:20

इश्क़ का रंग

इश्क़ का रंग लेकर आया, दीवाना मुझे रंगने
इक नज़र ही काफ़ी थी, मुझे लाल करने को
शर्म का बोझ लादे रही, पलकें उठी न एक बार भी
उसका आना ही काफ़ी था, ये दिल बदहाल करने को

नाकाम दूरियां! रंग इश्क़ का, फीका न कर सकी
दूरी 'दूरी' न थी, गुम रहे एक - दूजे के ख़्याल में
मौसम बीते, अरसा बीता, इश्क़ भी निखरता रहा
और दीवाना लौट आया, मुझे अपना बनाने हर हाल में

ज़ाहिर करती कैसे, कि कब चढ़ा मुझ पर रंग उसका
वो दीवाना नज़रअंदाज़ करता रहा, फिरता रहा भीड़ में
शर्म भी, डर भी और कमब़ख्त! ख़ुमार इस चाहत का
क्यों न रंगती इश्क़ में, क्यों न घोलती रंग तक़दीर में

मैं भी हुई दीवानी, अरसे बाद मिलकर दीवाने से
काबू न हुई हलचल, दिल भी न अब संभले
चढ़ जाए रंग ऐसा गहरा, अब कयामत तक न उतरे
आख़िर! इश्क़ का रंग लेकर आया, मेरा दीवाना मुझे रंगने (गीतिका चलाल)
@geetikachalal04

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30 SEP 2021 AT 0:45

मुझसे प्यार करते।

तुम भी वही जज़्बात रखते
वही शिद्दत, वही एहसास रखते
एक बार सुन लेते मुझे ग़ौर से
फिर ताउम्र अपनी बात रखते
ये दूरियाँ ख़ाक करते, या ख़ाक दहकता अंगार करते।
या तो इल्तिजा नज़रअंदाज़ करते या मुझसे प्यार करते।।

मैं यूँ न रोती ज़ार - ज़ार तन्हाई में
मैं यूँ न होती बेज़ार इस जुदाई में
न भीगता सिरहाना, न भीगती चादर
मैं यूँ न गुम होती, यादों की परछाई में
सीने से लगाते, या ख़ंजर मेरे, सीने से पार करते।
या तो मेरा क़त्ल करते या मुझसे प्यार करते।।

लम्बी दास्तान नहीं, बस ज़रा सी बात थी
उन हालातों में न तुम बर्बाद थे, न मैं आबाद थी
थाम तो लिया था हाथ मेरा, उस बचपने में
पर उस दिल्लगी में, न तुम क़ैद थे, न मैं आज़ाद थी
फ़रेब ही कह देते मेरी इबादत को या यक़ीन एक बार करते।
या तो बेइज़्ज़ती इतनी असरदार करते या वाक़ई मुझसे प्यार करते।। (गीतिका चलाल)

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12 SEP 2021 AT 23:54

क्या फ़ायदा?

धुआं उठने दे ऊँचा, फ़साना यूँ ही चलता रहेगा।
अब घबरा कर मोहब्बत करने का, क्या फ़ायदा?

दिल पर ज़ोर नहीं मेरा, इसे होना है बस तेरा
अजी! डर कर रिश्ते निभाने का, क्या फ़ायदा?

जलने दे ज़माने को, हमारी मोहब्बत की आग से
ज़ालिम शहर को न जलाए, तो क्या फ़ायदा?

अभी तो बस शुरुआत है, पत्थर हजार लगेंगे हमें
बिन चोट के, सब हासिल हो जाए तो क्या फ़ायदा?

मुद्दा होगा - बवाल होगा, हर दिन नया सवाल होगा
एक भी ज़ुबां पर, ताला न लगाए तो क्या फ़ायदा?

हर चौराह पर, बेग़ैरत - बेअदब कहे जायेंगे हम
तीर मुस्कुराहट का न चलाए, तो क्या फ़ायदा?

अब ख़ैरियत न पूछेगा कोई, ख़िलाफ़ होंगे सभी
अपनी दुनिया के ख़ातिर, बग़ावत न कर पाए तो क्या फ़ायदा?

क्यों शर्म से लिपटे, जब क़ुसूर नहीं मोहब्बत
बेख़ौफ़ टकरा कर झुका न दे ज़माना, तो क्या फ़ायदा? (गीतिका चलाल) @geetikachalal04

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12 SEP 2021 AT 2:07

अधूरी मोहब्बत
रोज़ तेरा मरना, रोज़ ख़ुद पर सितम
दर्द से मोहब्बत ज्यादा, ख़ुद से मोहब्बत कम

छोड़ दे आदत, मेरे ज़िक्र की हर बात पर
पास नहीं मैं तेरे, पर फ़िक्र अब भी होती है
गुज़रा वक्त 'आज' बनता नहीं कभी भी
पर तू है अज़ीज़ अब भी, तेरी कद्र अब भी होती है

दर्द से दिल्लगी, मुफ़्त है गम के बाजार में
वफ़ा महंगी है यारों! इस इश्क़ के सौदे में

तेरी शिद्दत - तेरी मोहब्बत, तोड़े न मेरी ख़ामोशी
काफ़ी है साबित करने को, हूँ मैं बेहद पत्थर दिल
न ज़ाया कर वक्त मुझ पर, न अब मुझे याद कर
मैं भूली नहीं कुछ भी, कि क्यों हूँ मैं अब पत्थर दिल

दिल ही है बेचारा, नादानियां बार - बार करता है
चोट लगती है प्यार से, फिर भी प्यार करता है

न दे सजा ख़ुद को, न बना यादों को सलाखें
उम्रकैद इंसाफ नहीं, एकतरफा मोहब्बत के लिए
ना बन इतना दीवाना, ना भूल अपनी दुनिया
मैं बनी नहीं कभी भी, तेरी बेइंतहां चाहत के लिए

उस वक्त मेरी दीवानगी को, तेरी आवारगी मिली
अब मेरी आवारगी, तेरी दीवानगी चाहती नहीं

बिछड़ा प्यार लौट आए तो ज़ख्म ताज़ा करती है
घाव से भरे दिल की, याददाश्त अच्छी होती है
अब न कर इंतज़ार, वक्त में दफ़न प्यार का
टूटी कांच सी मोहब्बत, सिर्फ़ दर्द ज्यादा देती है

ज़िंदगी, गुज़रे 'कल' को थाम कर दौड़ती नहीं
'अधूरी मोहब्बत' कभी भी, पुराने अंदाज़ में लौटती नहीं (गीतिका चलाल) @geetikachalal04

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10 SEP 2021 AT 14:59

एक बार

मैं लिख रही अपने जज़्बात।
तू आ कर पढ़ ले एक बार।।
हर हर्फ़ अब बना रहा नाम तेरा।
देख ले मेरी दीवानगी एक बार।।

हर वक्त तुझे, महसूस करती हूँ ख़ुद में।
तेरी तमाम यादों से, ख़ुद को सजा लिया।।
तेरी एक भी तस्वीर, मिटाती नहीं ज़ेहन से।
बीते लम्हों को अब, जीने का ज़रिया बना लिया।।
मेरी साँसें - मेरी धड़कनें अब भी तेरी क़र्ज़दार।
मेरी दुनिया है तेरी यादें, हक़ीक़त होने दे एक बार।।

तेरी यादों से, रिहाई नहीं चाहती।
अब तन्हाई भी, सूनी नहीं लगती।।
हां ! मैं रंगी, इस क़दर तेरे रंग में।
तुझसे दूरी भी अब, दूरी नहीं लगती।।
इन्तज़ार के समंदर में, डूबी मैं कईं बार।
तू ले आ कश्ती और बचा लें मुझे एक बार।।

मैं तक़दीर मान बैठी इस फ़ैसले को।
तू दूर मुझसे, मैं तूझसे कभी जुदा नहीं।।
मैं थी कल भी तेरी, मैं हूँ अब भी तेरी।
है यादें ही सब कुछ, गर तू मेरा हुआ नहीं।।
सारे लम्हें संभाले है मैंने, है तुझसे अब भी प्यार।
लिपटी हूँ अब भी तेरी यादों से, तू मिल मुझसे एक बार।। (गीतिका चलाल)

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14 JUN 2021 AT 1:20

विनम्र निवेदन!

जब तक मैं सलवार - कमीज में थी, चरित्रवान थी।
लेकिन जिस दिन कपड़ों का माप छोटा हो गया
लोगों की सोच ने भी छोटा होना बेहतर समझा।
किसी ने कहा- "बदन ढकना नहीं जानती, संस्कार क्या जानेगी? "
किसी ने कहा-"अपने पिता से, अपने भाई से शर्म नहीं?
बेशरम! ढंग के कपड़े पहन ले, गली में जवान लड़के है।"

ऐसी सोच रखने वालों सादर प्रणाम!
हो सके तो उस दुकान का नाम बताना
जहां संस्कार की फैक्ट्री में बने संस्कारी कपड़े बिकते हो।
और हां! माफ करना इस खोटी सोच ने मेरे घर पर जन्म नहीं लिया कि
मुझे मेरे पहनावे से तोला जाये।

घर के आदमी जब छोटे कपड़े पहने तो क्या पिता ने कभी ये कहा-
" मां से, बहन से शर्म नहीं?
बेशरम! ढंग के कपड़े पहन ले, गली में जवान लड़कियां है।"
अगर नहीं। तो विनम्र निवेदन!
विचार साफ रखिए।
नज़रिया साफ रखिए।
जब ख़ुद को छोटे कपड़ों के तराजू में तोलते नहीं।
तो लड़कियों को भी ऐसी सोच की ज़रूरत नहीं।
विचारों का मान रखिए।
दर्जा भी समान रखिए।
सलीका मत सिखाइए कपड़े पहनने का।
हक़ हर किसी का समान है जीने का।

कपड़े देख कर किसी के संस्कार/चरित्र/योग्यता का आंकलन मत कीजिए।
कृपया सोच का मैलापन दूर कीजिए।

विनम्र निवेदन!
आदमी हैं तो लड़कियों के कपड़ों के चयन का सम्मान कीजिए।
औरत हैं तो औरत हो कर उसके इस चयन का अपमान मत कीजिए।(गीतिका चलाल) @geetikachalal04

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