चाँदनी रात के साथ शमा जलती रही,
दिल तड़पता रहा, रूह मचलती रही!
आँखोँ से लाख दरिये बहे मगर फिर भी,
ना बुझी आग सीने में, शमा जलती रही!
हमने सोंचा था शायद सकून मिल सके,
इक ख्वाहिश थी जो दिल में पलती रही!
दोस्ती, फिर इश्क, फिर रूहानी रिश्ता,
साथ तेरे रहते रहते, शय बदलती रही!
राह-ए-इश्क में तलाश जब से थी तेरी,
इक तेरी याद थी जो साथ चलती रही!
उफनते सैलाब में बह गए शब-ए-वस्ल को,
वो शमा थी...पिघलती रही, पिघलाती रही!
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