शब्दों के तीर अपनी जुबान से
जरा संभल के चलाना
सुना है ऐसे वार से आवाज़ नही होती
पर दर्द बहुत होता है,
छलनी कर देता है दिल अंदर तक-
चुन लिया हमने
दर्द खुद के लिए
खुशियां उनके नाम कर दिया
जो भी था कुछ हमारे हिस्से
सब कुछ उन पर निसार कर दिया
फिर भी लोग कहने लगे
खुदगर्ज हमें और मतलबी
ना जाने क्यों, उनकी बात बस वही जाने,
हम मसरूफ हैं अपने आप में ही
फिर भी कभी कभी चुभन सा महसूस होता है
वो "शब्दों के तीर"
जब रुक रुक कर चलने लगते हैं
पर ना जाने क्यों, उनकी बात बस वही जाने-
शब्दों के तीर= ग़ज़ल.......
मुसलसल आज कल है, परेशान ये दिल,
शब्दों के तीरों से हुआ लहूलुहान ये दिल,
कभी-कभी यह शब्द मरहम बन जाते हैं,
ज़ख़्म पे पड़े नमक बन, है बेचैन ये दिल,
हालात मुसलसल संगीन होते जा रहे हैं,
रिश्तोंके झूठ-फ़रेबसे है अनजान ये दिल,
लफ़्ज़-लफ़्ज़ तंज़ के ज़हर में डूबे होते हैं,
अल्फ़ाज़ों के तकरार पर है हैरान ये दिल,
रूह भी ज़ख़्म-ज़ख़्म है शब्दों के तीरों से,
जिस्म की तकलीफ़ पे रोता न नादाँ ये दिल!-
💫• "शब्दों के तीर..." •💫
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"हो प्रफुल्लित आकर निकट हर कोई,यूँ शब्दों की बगिया को सजाओ तुम ।
ये शब्द ही तो हैं दर्पण व्यक्तित्व का प्यारे, इन्हें संयमित सा बनाओ तुम ।।
है जग में कौन पराया भला, हृदयचक्षु खोल देखो सभी तो अपने ही हैं यहाँ,
कि- मिले जब भी कोई तुम्हें तो उसे प्रेमालिंगित शब्दाहार पहनाओ तुम ।।"
( पूर्ण रचना अनुशीर्षक में...✍️ )
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✍️- Vishaal "Shashwat..."-
सपनों की लालसा में पहचान अदृश्य है
शब्दों के तीर हृदय आघात का उद्देश्य है,
मन की तलाश में ख्याल सुख प्राप्त है
नयन के द्वार में अनमोल स्मृति तृप्त हैं,
खुल के जीने में निराली छटा बिखरी है
प्रेम के रिश्ते में लज्जाशीलता प्यारी है,
विधाता के आंचल में अद्भुत रहस्य है
प्रेम के अलख उत्कर्ष ही कर्तव्य है,
नीले अम्बर में इन्द्रधनुष बेहद अनूप है
दिवाने से प्रेम में प्रेमिका पूर्ण रूप है।-
"शब्दों के तीर"
कश्ती तो मेरी भी लहरों से लड़ने वाली थी,
लेकिन हमे साहिलों का सहारा ना मिला।
हाथ में पतवार और दिल में हौसला बुलंद था,
फिर भी हमें हमारी मंज़िल का किनारा ना मिला।
कुछ इस तरह उसने चलाए शब्दों के तीर हम पर के,
मेरी जिंदगी की कश्ती भी डूब गई जज़्बातों के समुंदर में।
तकलीफ़ क्या हुई होगी मुझको वो उसे क्या पता,
वो तो चली गई मुझे तन्हा छोड़ कर किसी और की कश्ती में।
मेरी जिंदगी की कश्ती डूबना तो मेरी तक़दीर में था क्योंकि,
कोई अकेला इंसान कितने वक़्त तक बेज़ान रिश्तो को निभा सकता है।
-Nitesh Prajapati
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शब्दों का चयन बड़े ध्यान से कीजिए ,
शब्द ही हैं जो एक दूसरे से जोड़ते हैं या तोड़ते हैं !-
चलते रहे ना जाने कैसे-कैसे जहर भरे शब्दों के तीर
बहता रहा ना जाने कहाँ-कहाँ कितनी आँखों से नीर
कोई खामोशियों को ओढ़कर अपने फ़र्ज़ निभाता रहा
तो कोई मद में चूर होकर शब्दों के नश्तर चुभाता रहा
कमजोर नहीं था दिल बस रिश्तों का किया सम्मान था
कुछ लोगों को मगर खुद पर कुछ ज़्यादा ही अभिमान था
वक़्त की लाठियाँ एक रोज़ हर किसी पर चल जाती हैं
हवा का रूख़ बदलते ही गंदगी वापस उड़कर आती है
ज़ख्म बड़ा गहरे करते हैं जब लगते हैं शब्दों के तीर
कौन धराये धीर किसी को मसला बड़ा ही है गंभीर!-