चप्पल टूटी तो पैसों के मायने समझ में आये,
वर्ना हम तो खाली जेब में भी,
खुद को नवाब समझते थे।।-
शब्दों के बोझ से भी
थकते देखा है मैंने
देखा है खामोश होते हुए
समझ नही सका
खामोशी उनकी उनके
सँस्कार थी या फिर
रिश्तों की
आधारशीला-
कलम की स्याही तो मौन हो कर अपना छाप छोड़ गई,
पर शब्दों की गहराई ने शोर मचा दिया।
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जब तुम्हारे लिखनी की तपिश में,
तेरे विरोधी तपने लगे,
सच मानो तुम मशहूर होने लगे..-
शब्दों का एक शोर सा गूँजता रहता है
मेरे मन में,जब तक मैं उन्हें लिख ना लूँ
कागज के पन्नों में ...-
शब्दो मे कैसे कहूँ
अपनी ख्वाइशों को!
कह भी दी
तो क्या ठीक होगा ?
गर समझते हो मुझको तुम
तो समझना होगा तुमको!
मुझको मेरे शब्दों से ही।
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शब्दों की एक उथल पुथल सी चल रही है कब से मेरे मन में,मगर इस हाल को ना ये निगाहें बँया कर पा रही है और ना ये बेबस कलम ...
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कुछ रिश्ते
सिर्फ शब्दों के
शोर से पैदा होते हैं
तभी तो ज़रा सी
ख़ामोशी होने पर
दम तोड़ देते हैं!
- कनकने राखी सुरेंद्र-