वक़्त से थोड़ा सा वक़्त छीनकर लाऊंगा,
वक़्त को उस वक़्त की कहानी सुनाऊंगा,
यूं उलझाकर वक़्त को वक़्त की बातोंमें,
मैं हर वक़्त की बात वक़्त से कह जाऊंगा !
देखना हर हाल में मैं हालात को रोक पाऊंगा,
हाल न रुके तो रुकने वाला हालात बनाऊंगा,
मैं हर हाल को हालात के जाल में फंसाकर,
ऐसे हाल का मैं हारने वाला हालात बनाऊंगा !
अब तो हमेशा खुदसे एक दौड़ मैं लगाऊंगा,
यूं दौड़ते हुए भागदौड़ को भी मैं थकाऊंगा,
वक़्त के साथ मैं दौड़ को दौड़ना सिखाऊंगा,
दौड़ते दौड़ते एक दिन दौड़ को भी हराऊंगा !-
सुना है मेरे लिए अब किसी के पास
वक़्त नहीं है चलो अच्छा ही है क़ब्र में
किसी ओर के लिए जगह भी नहीं है-
सब कुछ खोकर ही तो मुझे जीना आया है
वरना कल तक जीना मेरे लिए बड़ा ही सरल था
इन आँसुओं ने मुझे हँसने का महत्व क्या खूब सिखाया है
वरना पागलों सा हँसना भी मेरे लिए बड़ा ही सरल था
ठोकरों ने ही मुझे गिर कर उठने का हुनर सिखाया है
वरना जीवन पथ पर यूँ ही चलते रहना मरे लिए बड़ा ही सरल था
सबका साथ पा कर ही मुझे अकेलेपन ने अपनाया है
वरना अकेला हो कर भी सबके साथ रहना मेरे लिए बड़ा ही सरल था
चुप रह कर ही तो मुझे कहने सुनने की कला आया है
वरना बदलते रंग रूप देख सोचना विचारना मेरे लिए बड़ा ही सरल था-
कोई अच्छा ,बुरा नही होता
वक़्त बस 'एक' सा नही होता
तुमको लगने को हम लगेंगे खुदा
पर जो 'दिखता' है वो नही होता
लोग खाते 'तमाम' है ठोकर
पत्थरो में 'ख़ुदा' नही होता
'दाग' लगने लगे है दामन में
इश्क़ अब 'पाक' सा नही होता
वो जो समझा नही वफ़ा को मेरी
हर कोई 'बेवफा' नही होता
कितना मगरूर है 'खुदा' मेरा
लोग कहते है कि नही होता-
मतलब मेरे जहान में , 'मिट्टी' के ढेर सा
जिस 'रंग' चाहे ढाल लो , 'सांचे' में जिस मुझे-
टूटी हुई घड़ी बांधता हूँ मैं हाथ में,
वक़्त के कदमों की आवाज़ कानों में गूंजती बहुत है।-
जब हमारी खुशी के लिए
हम एक साथ थे
जब माँ बाप की खुशी के लिए
हम किसी और के साथ है-
बहुत क़रीब थे हम सर्दियों में एक दूजे से पर
वक़्त ने मुझे दिसबंर उसे जनवरी बना दिया-