🍀🌺🍀विश्व आदिवासी दिवस पर शुभकामनायें!!🍀🌺🍀
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासी समाज के अधिकारों, आवश्यकताओं, उत्थान और प्राकृतिक संसाधनों पर उनके हक़ के बारे में विचार करने की आवश्यकता है।
किसी भी देश या राज्य के लिए उसकी जनजाति एक विशेष पहचान बनती है और अहम् स्थान रखती है। इनके अधिकारों के संरक्षण तथा इनकी संस्कृति एवं जीवनयापन के अनूठे तरीकों के संरक्षण हेतु सहयोग की जरूरत है।
आदिवासी समाज की समस्याओं के निराकरण के लिए इस दिवस को एक अवसर के रूप में लिया जाना चाहिए।-
9 August commemorates the International Day of the World’s Indigenous Peoples. It is celebrated around the world and marks the date of the inaugural session of the Working Group on Indigenous Populations at the United Nations in 1982.
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आकाश आत्मा मेरी, वन ही मेरे प्राण हैं
धरा है गोद मेरी, मिट्टी ही मेरी शान हैं।
कहने को पास कुछ भी नहीं
ना आडम्बर का अभिमान हैं,
पर प्रकृति के हर अंश पर
कह सकता हूं अधिकार है।
प्रकृति से निर्मित, मैं इसी की राख हूं,
निश्छल प्रेम से सना,
मैं एक अदना सा इंसान हूं।-
मैं आबू का रखवाला हूं
मैं जीव जंतुओं का प्रेमी हूं।
तीरंदाजी का खिलाड़ी हूं,
हां मैं आदिवासी हूं।।
मेवाड़ धरा की घाटियों का पहरेदार हूं,
हां मैं ही हल्दीघाटी युद्ध की तलवार हूं।
मैं अग्नि का अविष्कारकर्ता हूं,
मैं जंगल के जीवों का भ्राता हूं।
न क्षत्रिय हूं न वैश्य मैं मानवी हूं
हां प्रकृति का पुत्र आदिवासी हूं।।
प्रकृति मेरा भोजन मैं प्रकृति का संरक्षण हूं,
चंद कौड़ियों में बिक गया अब विस्थापन हूं।
नदियों सा मन रखता हूं,
पेड़ों सा जीवन जीता हूं।
पक्षियों से बोलना सीखा है,
पशुओं से चलना सीखा है।।
हां मैं आदिवासी हूं मैंने जंगल में जीना सीखा हैं।-
पगडंडी से गुज़रना है तो क्रमबंध चलना होगा। क्रमबद्धता हमे अनुशासन सिखाती है। ये पगडंडियां ग्रामों को जोड़ती हैं सड़कों से! सड़कें विकास का प्रतीक हैं और विकास तब तक अधूरा है जब तक पगडंडी पर नंगे पांव चलते प्रत्येक व्यक्ति को उसके अधिकारों की पादुका प्राप्त नहीं हो जाती!!
अनुशीर्षक-
"आदिवासी"
विश्व के 90 देशों में कर रहे हैं
प्रकृति और संस्कृति की रक्षा।
मित्र हैं जल, जमीन और जंगल के
अंतिम श्वास तक करते उनकी सुरक्षा।।
संयुक्त राष्ट्र के आँकड़े कहते हैं
है 370 मिलियन की आबादी।
फिर भी क्यों पहुँचे नहीं
चौथाई जनसंख्या तक आदिवासी।।
सात हज़ार की बोलियोंवाले,
पाँच हज़ार की संस्कृति संभालें।
फिर भी क्यों नहीं हटते घरों से उनके
अशिक्षा और गरीबी के जाले।।
हैं सैंकड़ों कलात्मकता से
घर-आँगन को सजाये,
हज़ारों किस्मों की
अनोखी सृजनात्मकता सँजोये,
बोल हैं जिनके गीत सरीखे
चाल समेटे हैं नृत्य तीखे,
देते दर्शन निर्मल आचरण का
विश्व को संदेश पर्यावरण संरक्षण का।
ऐसे हैं ये मंजुल मृदुभाषी
जिनको कहते हैं "आदिवासी"।।
मौलिक रचना -अनुपमा भगत
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जल, जीवन, प्रकृति को समेटे हुए
भिन्न भिन्न बोली, भिन्न भिन्न वेशभूषा है
प्रकृति ही जिनका सबकुछ
रहन सहन, खान पान भी जिनका अनूठा है
विश्व आदिवासी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
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जल जंगल जमीन के संरक्षक वो
प्रकृति और संस्कृति के रक्षक जो,
वेशभूषा विविधताओं को समेटे वो,
कला जीवन शैली को बचाये जो,
प्रकृति के उपासक आदिवासी वो।-
...आदिकाल से जिनकी सभ्यता प्रकृति से जुड़ी है
संरक्षण हेतू जिनकी जीवन कि हर क्रिया-कलाप गढ़ी है !
(For full piece plz read the caption)-
हमारे आदिवासी भाई-बहनों की वज़ह से ही
हमारी प्रकृति और संस्कृति अब तक बची हुई है...
अब के लीजेंड लोग तो पाश्चात्य होते जा रहे हैं...-