Anupama Bhagat   (Anupama Bhagat)
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Joined 2 April 2019


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22 AUG 2023 AT 12:45

दिल टूटा, टूटे चरण,
मगर न टूटा हौसला!
न रोक सकोगे उस पाखी को,
जिसका उड़ने का हो फैसला!

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5 SEP 2022 AT 20:06

"शिक्षक दिवस"
माता-पिता ने जन्म दिया,संस्कृति और संस्कार दिया।
फिर आयी शिक्षकों की बारी,जिन्होंने जीवन तार दिया।
शुभ प्रणाम दिव्य मानवों को,हमें शिक्षा का उपहार दिया ।
मन का अँधेरा दूर किया,ज्ञानदीप का प्रकाश दिया।
कभी डाँट से, कभी प्यार से,कभी छड़ी से मार दिया।
गलत राह चलने से रोका,सही राह को सँवार दिया।
सदा नमन श्री चरणों में,जिसने उन्नति का मार्ग दिया।
माटी लोन्धे जैसे तन को,ज्ञान रूपी आकार दिया।
जो न होते गुरु हमारे,ज्ञान दीप जलाता कौन?
गुरु ने आकर कलम थमाकर,अक्षरों का संसार दिया।
स्वप्न पंख लगाकर उड़ते,सही दिशा दिखाता कौन?
गुरु ने हाथ थामकर जीवन लक्ष्य का संज्ञान दिया।
जो नित हमारी उन्नति चाहे, सदाचार का पाठ पढ़ाये,
गुणों से हमें अलंकृत कर, इस जीवन पर उपकार किया।
गुरु बिन शिक्षा न होती पूर्ण, न मिलते पद, धन व सम्मान।
सदा नमन हे शिक्षकगण! हमें श्रेष्ठ बनने का सार दिया।
©अनुपमा भगत

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3 SEP 2022 AT 23:58

"पद" का सम्मान सिर्फ सेवानिवृत्ति तक ही होता है किन्तु "व्यक्तित्व" का सम्मान मरणोपरांत भी होता है!

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21 AUG 2022 AT 1:07

#अजनबी
न दीवारें सुनती हैं, न फर्श बोलते हैं!
कहीं-कहीं एक छत के नीचे
जाने कितने अजनबी रहते हैं!
सन्नाटों में गूँजती हैं,घड़ी की टिकटिक,
न चंदा मुस्कुराता है,न तारे टिमटिमाते हैं!
छप्पर से टपकती है,ओस आँसूओं की तरह,
न बारिश बहलाती है, न नेह झिलमिलाते हैं!
फटे-बिखरे पन्नों में, कुछ शब्द छुप जाते हैं,
न गीत ही बन पाती है, न अधर ही बोल पाते हैं!
कभी-कभी एक छत के नीचे
जाने कितने अजनबी रहते हैं!

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29 JUL 2022 AT 1:06

हर शख्सियत में वो दिलकशी नहीं मिलती...
जिससे मिलो तो लगे कि जहाँ मिल गया...

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16 APR 2022 AT 9:44

थम जाएगा जब स्पंदन,
जब रुक जायेंगी साँसें,
तो क्या मृत्यु के बाद भी जीने की कोई ललक होगी?
इस जीवन के पार भी क्या जीवन की कोई झलक होगी?
सच है कि यह तन न शेष होगा,
जब मृत्यु का देह में प्रवेश होगा,
रूह का वैकुण्ठ में वास होगा,
गुमनाम हर श्वास होगा,
यूँ होने को तो हम न होंगे,
मगर संसार में क्या मेरे काव्यों की महक होगी?
इस जीवन के पार भी क्या जीवन की कोई झलक होगी?
थोड़े टूटे से, थोड़े बिखरे से,
अगर हैं स्वप्न थोड़े निखरे से,
सौंप दूँ जो बनाकर निशानियाँ,
क्या सजकर किसी की आँखों में फिर निमेष अपलक होगी?
इस जीवन के पार भी क्या जीवन की कोई झलक होगी?
समर्पित हो जब ये हृदय किसी को,
क्या किसी को फिर जीवन देगा?
क्या धड़केगा फिर से ये दिल,
क्या यूँ ही अहसासों की लहक होगी?
इस जीवन के पार भी क्या जीवन की कोई झलक होगी?
©अनुपमा भगत

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30 JAN 2022 AT 14:58

"स्वाभिमान"
–------------
मसक जाये जो प्रीत की चादर, किन्चित उसे सीया नहीं जाता।
बिना साभिप्राय के कभी किसी से, विष तो पीया नहीं जाता।।

जीवन गरल है, समय अटल है, सुख ऋण में लिया नहीं जाता।
आलस्य, विश्राम सादृश्य कहीं, उद्यम, प्रयत्न लिया नहीं जाता।।

जीवन क्या स्वाभिमान बिना! मनुज! ऐसे तो जीया नहीं जाता।
राग, पीर, विवेक, विचार के बिना काव्य तो किया नहीं जाता।।

— % &

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27 JAN 2022 AT 20:51

धर्म "करुणा" भी सिखाता है और "कट्टरता" भी!
दोनों में से हम क्या अपनाते हैं ये हमारी "परवरिश" और "परिवेश" तय करता है!— % &

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24 AUG 2021 AT 13:58

"हम सरकारी नौकरीवाले हैं!"
घर से आये प्रसन्नचित हम,
आँखों में ख़्वाब सच्चे वाले हैं!
यहाँ सच की लीपा-पोती है,
ये दफ़्तर अजब निराले हैं!
न होना ज़रूरी दूरदर्शिता
बस नज़रें नियमों में डाले हैं!
सब काम करें निदेशानुसार,
हम मूक, निर्देश माननेवाले हैं!
बजट बनायें, निविदा निकालें,
बेहतर कार्य की सुध नहीं,
छाँट दिए अनुभवी इजारेदार,
साझे में न्यूनतम दर वाले हैं!
जो समय से पहुँच जाते दफ़्तर,
खाली कुर्सियाँ तोड़ें दिनभर,
चाटूकारीकर वरीय हाकिमों की,
मनचाही प्रोन्नति ले डाले हैं!
जो खटते हैं दिन-रात ईमान से,
रह नहीं पाते वो कभी शान से,
दबे बोझ से कार्य प्रभारों के,
वो झोली में स्पष्टीकरण डाले हैं!
मुँह में ताले, आँखों में जाले,
कानों में तेल भी डाले हैं,
निर्देश मिले तो चल पड़े वो,
ऐसे कलम में चाभी डाले हैं!
हम सरकारी नौकरी वाले हैं!

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15 AUG 2021 AT 13:35

"क्या लिखूँ?"

ईश्क़ लिखूँ या प्यार लिखूँ,
कश्मीर लिखूँ या थार लिखूँ?
रंग बदलती दुनिया में कैसे
मौसमों की रंगत और बहार लिखूँ?
पशुओं की वृत्ति कृतज्ञता तो कैसे
मानव का कृतध्न व्यवहार लिखूँ?
कैसे जाति-धर्म में बँटी सभ्यता,
किसने किया ये उपकार लिखूँ?
दुश्मन का कुटिल वार लिखूँ और
हिमालय की श्रेष्ठता का सार लिखूँ!
गंगा का निर्मल प्रवाह लिखूँ या
जोग की ऊँची धार लिखूँ?
अरब सागर का दुलार लिखूँ या
सह्याद्रि का शृंगार लिखूँ?
इंदिरा पॉइन्ट से इंदिरा कोल
तक की पहेली का कोई तार लिखूँ!
किबिथु में लोहित का राज लिखूँ या
सिर्किक में उठता ज्वार लिखूँ?
कैसे लिखूँ ईमान का सौदा,
क्यों न वीरों का अमर बलिदान लिखूँ!
हे स्वतंत्र भारत! सुख का कारक!
तेरी मंगलकामना में सारा संसार लिखूँ!
हे मातृभूमि! माँ भारती!
तेरी अभिवंदना में मंगल छंदों का हार लिखूँ!

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