तितलियां पथिक हैं
भटकती है फूल दर फूल
फूल घर है सदा
खुशबू का...-
भीतर एक सैलाब है जिसे उठने से बचाये हैं..
ख़ुद से ख़ुद ... read more
संभावना में निहित संभव की अंतरात्मा से मन पूछ बैठा- क्या तुम्हारी उपस्थिति से इस बात को बल मिलता है के उसके आने की आस जीवित रहे???
संभावना मौन रही।
संभव ने अपने नाम के आरंभ में अ का उपसर्ग लगा लिया है।-
कुछ दस्तक होती है मेरे दर पर हर रोज़
कुछ आहटें आमद का शोर नहीं मचाती-
कोई पूछे अपनों के दिये ज़ख़्मों का रंग कैसा होता है
हम अपने मुस्कुराते लबों पर टूटे दिल की सुर्खियां रख देंगे-
खिड़की के पल्लों तक उड़ कर आते..
आकर टकराते पत्तों ने पतझड़ के आने का संदेशा दिया है।
आसपास खड़े पेड़ों पर नज़र पड़ी मगर
कहीं उदासी नज़र नही आ रही
न उन्होंने ओस की चादर पहने
रोने का ही कोई बहाना पेश किया है।
पेड़ों ने पत्तों की विदाई स्वीकार कर ली है।
पत्तो ने भी बिना मुड़े आगे बढ़ते हुवे
अपनी नियति तय कर ली है।
ये घटना मात्र ऋतु परिवर्तन नहीं है, ये जीवन है।
सुनो!!!
मै अब तुम्हे विदा करती हूं....।-
दीर्घायुरारोग्यमस्तु,सुयशः भवतु,विजयः भवतु, जन्मदिनशुभेच्छाः।
(साभार_गूगल)-