"क्या तुम कोई विदेशी भाषा सीख रहे हो?"
"हाँ।"
"अरे वाह, कौन सी?"
"हिंदी..."-
घोर त्राण! घोर त्राण!
निर्लज्जता से उड़ें प्राण
मिट रही सारी उम्मीदें
संस्कारों की चड़ें बलि
आधुनिकता के नाम पर
दिखता पाश्चात्य दर्शन ही
अनुकरणीय जो नवीन
जीवन शैली
बचता जीवन में कोई
रस नहीं
ना योग का नाम है
ना वियोग का काम है
जाने कौन दिशा विराम है
अधोगति में डूबा
सुबह शाम है-
मेहमान चाहें जितना भी विदेशी हो,
एक वक़्त से ज्यादा ठहरे तो,
इज्ज़त कम होती ही है।
अब कोरोना वायरस को ही लेलो?-
विदेशी मसाज अब अपने ही देश में..,
एक पत्थर तो फेको उत्तर प्रदेश में.!!
🤪🤪-
जितना हम विदेशी सभ्यता को अपनाते हैं।
अगर हम अपनी सभ्यता को अपना आएंगे,
हमारी सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है,
और नंबर एक पर रहेगी।
विदेश से लोग आकर भारत की सभ्यता को
अपना रहे हैं।
और हम लोग पश्चिमी सभ्यता अपना रहे हैं।
कहां से देश आगे बढ़ेगा..-
घर को अपने छोड़ बैठे हैं किराये के मकानों में
और कहते स्वावलम्बन है जरूरी देश को यारो-
हमारे यहा जो दूर से आता हैं...
उसका यहा बड़ा सम्मान होता हैं....
गलियों के कुते को खाना नहीं देते....
और विदेशी कुते का मीट मुर्गे से जलपान होता हैं.....-
✍️भरोसा (धोखा)✍️
सच की ताकत से बड़ा होता है
आदमी गिर कर खड़ा होता है
झूठ के पैर कुछ नहीं होते
बस ज़रा सा मुंह बड़ा होता है
खरीदोगे जमीर बिकता है
देखो कितना अमीर बिकता है
चंद सिक्कों में दुआ बेचता है
झोली वाला फकीर बिकता है
हमको अंग्रेज पर भरोसा है
और देसी दवा में धोखा है
जड़ी - बूटी के देश में यारो
देखो कैसे गरीब लुटता है
जो भी करता है काम की बातें
उस पे पड़ती हैं चार - छ: लातें
जिसकी जितनी बिसात छोटी है
उतना हर्जाना बड़ा होता है
यहीं पीपल कभी पुजते थे “विनय”
जहां कीकर अब खड़ा होता है-
"विदेशी चरस के
लगाए हैं सुट्टे।।"
सोचते हैं
"बरफ में सिकेंगे
सियासत के भुट्टे।।"
☺️लगे रहो नासपीटों☺️-